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________________ कमठ और मरुभूति । [१३ मनुप्योंके बिचारों अथवा परिणामोंका बड़ा गहरा संबंध उनकी भलाई-बुराईसे लगा हुआ है । अच्छे विचार होंगे, तो परिणाम भी अच्छे होंगे और परिणाम अथवा मनके अच्छे होनेपर ही वचन और कार्य अच्छे हो सकेंगे; किन्तु इसके विपरीत बुरे विचारों और परिणामोंसे बुरे कार्य होंगे जिनका फल भी बुरा होगा। इस वैज्ञानिक नियमका ही शिकार बिचारा मरुभूति बन गया ! अन्तिम स्वांसमें उसने हलाहल विष चख लिया, जिससे वह पहले चौकन्ना रहता था। अस्तु; दूसरी ओर कमठको भी अपने बुरे कार्यका दुष्परिणाम शीघ्र ही चखना पड़ा। तापसियोंने उसके इस हिंसक कर्मसे चिढ़कर उसे अपने आश्रमसे निकाल बाहर कर दिया । वह दुष्ट वहांसे निकलकर भीलोंमें जाकर मिला और चोरी करनेका पेशा उसने गृहण कर लिया । आखिर इसतरह पापकी पोट बांधकर वह भी मरा और मरकर कुर्कुट सर्प हुआ । उसके बुरे विचार और बुरे कार्य उसकी आत्माको पशुयोनिमें भी बुरी अवस्थामें ले गये । जैसा उसने बोया वैसा पाया । सचमुच जीवोंको अपने२ कर्मो का फल भुगतना ही होता है। जो जैसी करनी करता है वैसी ही उसकी गति होती है। मरुभूतिने भी आर्तरूप विचारों के कारण पशुयोनिके दुःखमें अपनेको पटक लिया । क्रोधके आवेशमें सगे भाइयोंमें गहरी दुश्मनी पड़ गई, जो जन्म जन्मान्तरोंतक न छूटी यह पाठक अगाड़ी देखेंगे ! अतएक क्रोधके वशीभूत होकर प्राणियोंको वैर बांधना उचित नहीं है ।
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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