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________________ धरणेन्द्र- पद्मावती - कृतज्ञता ज्ञापन | [ १५१ होनेके कारण राजा नागधर्म के नामसे प्रगट होगा और उसकी रानी भी अपने पितृपक्षकी अपेक्षा नागदत्ता तथैव पुत्र अपनी माताके अनुरूप नागदत्तके नामसे प्रख्यात् होना चाहिये । इसप्रकार के नामोलेखके कई ऐतिहासिक उदाहरण मिलते हैं। राजा श्रेणिककी रानी चेलनी अपने पितृपक्षकी अपेक्षा 'वैदेही' अथवा ' विदेहदत्ता रूपमें और उनका पुत्र कुणिक अजातशत्रु अपनी माताके कारण 'विदेह पुत्र' के नामसे प्रगट हुये थे ।' आराधना कथाकोषकी एक अन्य कथा में पाटिलपुत्र के एक जिनदत्त नामक सेठकी स्त्रीका नाम जिनदासी और उसके पुत्रका नाम जिनदास मिलता है। यहां भी उक्त प्रकार नामोल्लेख होना स्पष्ट है । उज्जैन के आसपास दशपुर और पद्मावती में नागवंशियोंका राज्य था यह प्रकट ही है । अस्तु, उक्त कथाके पात्र भी बहुत करके नागवंशी ही थे और नागदत्त जैन मुनि हुए; इससे उनका जैनधर्मी होना स्पष्टतः प्रकट है । उपरांत ऐतिहासिक कालके नागवंशी राजा जैन स्वीकार किये गये हैं । सेन्द्रक नागवंशी राजा भी जैन थे। इसप्रकार नागवंशी राजाओं का जैनधर्म से प्राचीन सम्बन्ध प्रकट है । और यह संभव है कि भगवान पार्श्वनाथका उपासक कोई परमभक्त नागवंशी राजा हो, जो शासनदेव नागेन्द्र धरणेन्द्रके साथ भुला दिया गया हो । अहिच्छत्र' से जो भगवान पार्श्वनाथका सम्बन्ध बतलाया जाता है उससे भी यही अनुमान ठीक जंचता है; क्योंकि यह तो स्पष्ट ही है कि भगवान पार्श्वनाथका केवलज्ञान स्थान प्रत्येक जैनशास्त्रमें बनारसके 3 १ - हमारा भगवानमहावीर पृ० १४३ । २-आ० कथा० भाग ३ पृ० १६१ । ३-४-स्टडीज इन साउथ इन्डियन जैनीज्म भाग २ पृ०७४।
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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