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________________ १४४] भगवान पार्श्वनाथ । अधिकार रहा था। उद्यान प्रान्त (पंजाब) में भी नागवंशियोंका राज्य था। वहां एक अपलाल नामक नागराजाका अस्तित्व बत. लाया गया है। काश्मीरके राना दुर्लभ (सन् ६२५-६६१) भी नागवंशी थे। अहिच्छत्र (बरेली) में भी बुद्धके समय नागराजाओंका राज्य था। उसी समय बौद्ध गयामें भी एक नागराजाका अस्तित्व बतलाया गया है । रामगाम (मध्यप्रांत)में भी इन रानाओंका राज्य होना एक समय प्रकट होता है। फाहियान और ह्युनत्सांग, इन दोनों ही चीनी यात्रियोंने यहांपर नागराजाओंका होना लिखा है, जो बुद्धके स्तूपकी रक्षा करते थे। ह्युनत्सांग लिखता है कि वे दिनमें मनुष्यरूपमें दिखाई पड़ते थे। इस उल्लेखसे स्पष्ट है कि उस समय भी लोगोंमें इनके वस्तुतः नाग होनेका भ्रम घुसा हुआ था, यद्यपि वस्तुतः यह नागलोग मनुष्य ही थे, जैसे कि ह्युनत्सांगके उक्त उल्लेख और जैन शास्त्रोंके कथनसे प्रकट है। लंकाके बौद्धोंका विश्वास है कि गगाके मुहाने और लंकाके मध्यके एक देशमें नागलोगोंका राज्य था ।' दक्षिण भारतके मजे रका स्थानमें भी नागोंका निवास था। तामिलके प्राचीन शास्त्रकारोंने तामिलके निवासियोंको तीन भागोंमें विभक्त किया है और उनमें नागलोग भी हैं । पल्लववंशके प्राचीन राजाओंका विवाह सम्बन्ध नागकुमारियोंसे हुआ था। प्राचीन चोलरानाओंका भी इनसे संबंध था । तामिलदेशका एक भाग नागवंशकी अपेक्षा नागनादु कहलाता १-राजपूतानेका इतिहास प्रथम भाग पृ० २३०-२३२ । २-कनिन्धम, ऐनशियेन्ट ऑफ इन्डिया पृ. ९५। ३-पूर्व पुस्तक पृ० १०७ । ४-पूर्व पुस्तक पृ० ४१२ । ५-पूर्व० पृ० ४१४ । ६-पूर्व० ४८३ । ७-पूर्व, पृ० ४८४ । ८-पूर्व० पृ० ६११ । ९-पूर्व० पृ. ६१५ ।
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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