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________________ गया।" __ धरणेन्द्र-पद्मावती कृतज्ञता-ज्ञापन। [१३९ अर्थात्-‘देवी पद्मावती जिनमतकी उन्नतिकी करनेवाली थी इसलिए वह शासनदेवता कही जाने लगी और गुणोंकी परीक्षामें चतुर जिनशासनकी रक्षाका भलेप्रकार जानकार धरणेन्द्र यक्ष कहा धरणेन्द्र और पद्मावती इस तरह यक्ष-यक्षिणी प्रमाणित होते हैं । दिगंबर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायोंके शास्त्र इस बातपर एकमत हैं किन्तु इस हालतमें यह विरोध आकर अगाड़ी उपस्थित होता है कि यक्ष व्यन्तर जातिके देवोंका एक भेद है और धरणेन्द्र पद्मावतीको शास्त्रोंमें नागकुमारोंका इन्द्र-इन्द्राणी बतलाया है, जो भवनवासी देवोंमेंसे एक हैं । फिर श्वेताम्बर शास्त्रकारोंने जो धरणेन्द्रको पातालका राजा और श्रीपार्श्वनाथनीका शासनदेवता पार्श्व यक्ष बतलाया है उसका भी कुछ कारण होना चाहिये । यद्यपि अन्ततः वहां भी धरणेन्द्र और पार्श्व यक्ष समानरूपमें व्यवहृत हुये मिलते हैं। इन बातोंको देखते हुए क्या यह संभव नहीं है कि नागवंशी राजाओंका विशेष सम्पर्क भगवान पार्श्वनाथजीसे रहा हो ? नागवंशी राजा और नागकुमारोंके अधिपति धरणेन्द्रको एक ही मानकर किसी तरह उक्त प्रकार भ्रमात्मक उल्लेख होगया हो तो कुछ आश्चर्य नहीं, क्योंकि पुरातनकालमें इतिहासकी ओर आचार्योंका बहुत कम ध्यान था। तिसपर यह प्रगट ही है कि भगवान पार्श्वनाथसे पहले भारतपर नागवंशी राजाओंने ९-श्रीपार्श्वनाथ चरित्र ( कलकत्ता) प० ४१५ श्री बृहद् पद्मावती स्तोत्रमें भी यही लिखा है यथाः-.. 'पातालाधिपति प्रिया प्रणयनी चिंतामणि प्राणिनां । .... श्री मत्पार्श्व जिनेश शासनसुरी पद्मावती देवता ॥ २२ ॥
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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