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________________ ११२] भगवान पार्श्वनाथ । आगमनका कारण जाननेको उत्कण्ठित हो उठे । महाराणी भी बड़े मिष्ट स्वरमें विनयके साथ शिष्ट वचनोंमें 'शत्रुओंके मुकुटमणिकी आभासे चमचमाते हुए चरणकमलवाले' अपने पति राना विश्वसेनसे यों कहने लगी कि 'हे देवोंके प्रिय आर्य ! आन रात्रिको निस समय मैं सो रही थी तो उस समय रातके पिछले पहरमें मुझे हाथी, बैल, सिंह, कमल, पुष्पमाल, सूर्य, युगल, मीन, कलश आदि सोलह स्वप्न दिखाई पड़े थे, तथापि गनको मुख में प्रवेश करता हुआ जानकर मैं रोमांचित ही होगई थी। हे आर्य ! तब ही से मुझे आपके निकट आकर इन स्वप्नों का फल जाननेकी उत्कण्ठा लग रही थी। प्रिय ! प्रातः होते ही नित्यकी शौचादि क्रियायों और भगद्भजनसे निवृत होकर मैं आपकी सेवामें उपस्थित हुई हूं । महारान ! इन स्वप्नोंका फल बतलाकर मेरे चंचल मनको शांत कीजिए।' राजा विश्वसेन अपनी प्रिय अ गिनीके मुखकमलसे यह वर्णन सुनकर बड़े ही प्रसन्न हुये। उन्होंने अत्यन्त प्रियकर शब्दोंमें महाराणीके प्रश्न का उत्तर देना प्रारंभ किया और अपने दिव्य अव. धिज्ञानके आधारसे उन्होंने उन सोलह स्वप्नोंका उत्कष्ट फल रानीको यह बतलाया कि तेरे गर्भ में तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथके जीवका अवतरण हुआ है। रानी इस फलको सुनकर बड़ी ही हर्षित हुई मानों रंकको निधि ही मिल गई हो । दरबारी भी फूले अंग न समाये । सबहीने मिलकर आनंद उदधिमें गोते लगाए ! वह वैशाख मास का कृष्णपक्ष था और द्वितीयाकी तिथि थी कि रात्रिके अवसान समयपर महाराणी ब्रह्मदत्ताने त्रिलोकवन्दनीय
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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