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________________ बनारस और राजा विश्वसेन। [९५ ब्राह्मणोंके 'शङ्करपार्दुभाव' में वाराणसीके राजा दिवोदासका उल्लेख है। उसमें कहा गया है कि 'पद्मकल्प' नामक कालके मध्य समयमें ऐसा अकाल पड़ा कि संसारके अधिकांश मनुष्य अपने प्राणोंसे हाथ धो बैठे। यहांतक कि स्वयं ब्रह्माको इस तबाई पर बड़ा दुःख हुआ । उस समय रिपुञ्जय नामक राजा कुश द्वीपके पश्चिम भागमें राज्य करता था । उससे भी अपनी प्रनाकी दुर्दशा देखी न गई और वह अपने शेष दिन व्यतीत करनेके लिये काशीमें आगया। ब्रह्माने रिपुजयको सारे संसारका राज्य देदिया और काशी उसकी राजधानी बनादी तथापि उसे इधर उधर भटकती फिरती त्रसित मनुष्यजातिको एकत्रित करने और उसको उचित स्थानोंपर बसानेकी आज्ञा दी। साथ ही उसका नाम दिवोदास रख दिया। राजा इस उत्तरदायित्वको स्वीकार करनेमें पहले तो आनाकानी करने लगा, पर इन शर्तोंपर उसने यह भार ग्रहण कर लिया कि जो भी प्रसिद्धि उसे प्राप्त हो वह ठेठ उसीकी हो और कोई भी देवता उसकी राजधानीमें न रहने पावे । हठात् ब्रह्माने यह शर्ते मंजूर कर ली; और स्वयं महादेव अपने प्रियस्थान काशीको छोड़कर गंगाके मुहानेपर मंदारगिरिके ऊपर जा विराजे । दिवोदा. सका राज्य विशेष बलपूर्वक प्रारम्भ हुआ, जिससे देवताओंके भी कान खड़े होगए। इसने सूर्य और चन्द्रको सिंहासन च्युतकर दिया और अन्योंको उनके स्थानपर नियत किया। साथ ही एक अग्निका किला भी बनाया परन्तु काशीकी प्रजा उसके पुण्यमई राज्यमें बड़ी सुखी थी। देवता ही उसके ईषोलु थे और महादेव अपने प्रिय स्थानको लौटनेके लिए छटपटा रहे थे। उन्होंने देवताओंको राना
SR No.022598
Book TitleBhagawan Parshwanath Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1928
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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