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________________ सिरिचन्दा - वेज्झय पइण्णयं विगसियवरनाणदंसणधराणं 1 जगमत्थयढियाणं नाणुज्जोयगराणं लोगम्मि नमो जिणवराणं ॥ १ ॥ जगत (लोकपुरुष) के मस्तक ( सिद्धशीला) पर नित्य बिराजमान विकसित पूर्ण श्रेष्ठज्ञान और दर्शन गुण धारक ऐसे श्री सिद्ध भगवंत और लोक में ज्ञान का उद्योत करने वाले श्री अरिहन्त भगवन्त को नमस्कार हो । इमो सुह महत्थं निस्संदं मुक्खमग्गसुत्तस्स । विगहनियत्तिअचित्ता, सोऊण य मा पमाइत्थ ॥ २ ॥ यह प्रकरण मोक्षमार्ग दर्शक जिनागमों का सारभूत और महान गंभीर अर्थयुक्त है, इसे चार प्रकार की विकथाओं से रहित होकर एकाग्र चित्त से सुनो और श्रवणकर उस अनुसार आचरण करने में अंश मात्र भी प्रमाद न करो ॥ विणयं आयरियगुणे सीसगुणे विणयनिग्गहगुणे य नाणगुणे चरणगुणे मरणगुणे इत्थ वुच्छामि ॥ ३ ॥ इस पयन्ने में मुख्यता से सप्त विषयों का विचार करने में आया है । १ विनय, २ आचार्यके गुण, ३ शिष्य के गुण ४ विनयनिग्रह के गुण, ५ ज्ञानगुण; ६ चारित्रगुण ७ मरणगुण ॥ विनय स्वरूप जो परिभवइ मणुस्सो आयरियं जत्थ सिक्खए विज्जं । तस्स गहियावि विज्जा दुक्खेण वि निष्फला होइ ॥ ४ ॥ जिन के पास से ज्ञान प्राप्त किया है उस आचार्य - गुरु का जो मानव पूर्वाचार्य रचित 'सिरिचंदावेज्झय पइण्णयं' 3
SR No.022597
Book TitleSirichandvejjhay Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya, Kalapurnasuri, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages34
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_chandravedhyak
File Size3 MB
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