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________________ (१०) श्रीजैनसिद्धान्त - स्वाध्यायमाला १० ॥ पाणे य नाइवाज्जा, से समीइ ति बुचई ताई । तओ से पावयं कम्मं, निज्वाइ उदगं व थलाओ ॥ ९ ॥ जमनिस्सिएहिं भूएहिं, तसनामेहिं थावरेहिं च । नो सिमार मे दंडं, मणसा वायसा कायसा चैव ॥ सुद्धेसणाओ नच्चाणं, तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं । जाया घासमेसेज्जा, रसगिद्धे न सिया भिक्खा ॥ ११ ॥ पन्ताणि चेव सेवेज्जा, सीयपिंडं पुराणकुम्मासं । अदु वकसं पुलागं वा, जवणट्ठाए निवेस घुं ॥ १२ ॥ जे लक्खणं च सुविणं, अङ्गविज्जं च जे पउज्जन्ति । न हु ते समणा वृच्चन्ति एवं आयरिएहिं अक्खायं || १३ || जीवियं अणियमेत्ता, पभट्ठा समाहिजोएहिं । निट्ठियं ॥ १७ ॥ ते कामभोगरसगिद्धा, उववज्जन्ति आसुरे का ॥ १४ ॥ तत्तो वि य उच्चट्टित्ता, संसारं बहु अणुपरियडन्ति । बहुकम्मले वलित्ताणं, बोही होइ सुदुल्लाहा तेसिं ॥। १५ ।। कसिपि जो इमं लोयं, पडिपुण्णं दलेज्ज इक्कस्स । तेणावि से न संतुस्से, इइ दुप्पूरए इमे आया ॥ १६ ॥ जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवड्ढई । दोमासकयं कज, कोडीए वि न नो रक्खसीसु गिज्झेज्जा, गंडवच्छासु ऽणेगचित्तासु । जाओ पुरिसं पलोभित्ता, खेल्लन्ति जहा व दासेहिं ।। १९ ।। नारीसु नोवगिज्झेज्जा, इत्थी विप्पजहे अणागारे | धम्मं च पेसलं नच्चा, तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं ।। १९ ॥ इअ एस धम्मे अक्खाए. कविलेणं च विसुद्ध नेणं । तरिहिन्ति जे उ काहिन्ति, तेहिं आराहिया दुवे लोग ॥ २० ॥ तिमि ॥ इअ काविलीयं अट्ठमं अज्झयणं समत्तं ॥ ८ ॥ THORS ॥ अह न नमपव्वज्जा अज्झयणं ॥ ॥ ॥ चइऊण देवलोगाओ, ववन्नो माणुसम्मि लोगम्मि । उवसन्तमोहणिज्जो, सरई पोराणियं जाई जाईं सरित्तु भयवं, सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे । पुत्तं वेत्तु रज्जे, अभिणिक्खमई नमी राया से देवलोगसरिसे, अन्तेउरवरगओ वरे भोए । भुंजित्त नमी राया, बुद्धो भोगे परिच्चयई ॥ मिहिलं सपुरजणत्रयं, बलमारोहं च परियणं सव्वं । चिच्चा अभिनिखन्तो, एगन्तमहिड़ीओ भयवं ॥ ४ ॥ कोलाहलग सभूयं, आसी मिहिलाए पव्वयन्तम्मि। तया रावरिसिम्मि, नमिम्मि अमिणिक्खमंतम्मि | ५ | ३ ॥ १ ॥ २ ॥
SR No.022591
Book TitleUttaradhyayan Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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