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________________ श्रीजैन सिद्धान्त - स्वाध्यायमाला. ३३ ॥ ॥ ३४ ॥ ॥ ३५ ॥ ३६ || ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ४३ ॥ केसिमेवं बुवाणं तु, गोयमो इणमव्यवी । विन्नाणेण समागभ्म, घम्मसाहणमिच्छियं ॥ ३१ ॥ पच्चयत्थं च लोगस्स, नाणाविहविगप्पणं । जत्तत्थं गणहत्थं च, लोगे लिंगपओयणं ॥ ३२ ॥ अह भवे पन्ना उ, मोक्खसन्भूयसाहणा । नाणं च दंसणं चैव चरितं चैव निच्छए ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संमओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा अणे गाणं सहस्साणं, मज्झे चिट्ठसि गोयमा । ते य ते अहिगच्छन्ति, कहं ते निज्जिया तुमे एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस । इसहा उ जिणित्ताणं, सङ्घमत्तु जिणामहं || सत्तू य इइ के बुत्ते, केसी गोयम मन्धवी । तओ केसिं बुवंतं तु. गोयमो इणमब्बवी गप्पा अजिए संतु, कसाया इन्दियाणि य । ते जिणित्त जहानायं, विहरामि अहं मुणी साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो, अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा दीसन्ति यहवे लोए, पासबद्धा सरीरिणो । मुक्कपासो लहुन्भुओ, कहं विहरिसी मुणी ते पासे सहसो चित्ता निहन्तूण उवायओ । मुक्कपासो लहुन्भुओ, कहं विहरामि अहं मुणी पासा य इइ के बुत्ता, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्धवी ॥ रागद्दोसादओ तिवा, नेहपामा भयकरा । ते छिन्दित्ता जहानायं विहरामि जहक ॥ साहु गोयम पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ॥ अन्तोहिययसंभूया, लया चिट्ठह गोयमा । फलेइ विसभक्खीणि, सा उ उद्धरिया कहं तं लयं सङ्घसो छित्ता, उद्धरित्ता समूलियं । विहरामि जहानायं, मुक्को मि विसभक्खणं ॥ या य इह का वुत्ता, केसी गोयममब्ववी । के सिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ भवतण्हा लया वृत्ता, भीमा भीमफलोदया । तमुद्धिच्चा जहानायं, विहरामि जहासुहं ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो, मे संमओ इमो । अन्नो वि संमओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ॥ ४९ ॥ संपज्जलिया घोरा, अग्गी चिट्ठइ गोयमा । जे डहन्ति सरीरत्थे, कहं विज्झाविया तुमे ।। ५० ।। महापसूयाओ, गिज्झ वारि जलुत्तमं । सिंचामि समयं देहं सित्ता नो व डहन्ति मे ।। ५१ ॥ अग्गीय इइ के वुत्ता, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु. गोयमो इणमब्बवी ॥ ५२ ॥ कसाया अग्गिणो वुत्ता, सुयसीलतवा जल । सुयधाराभिहया सन्ता, भिन्ना हु न डहन्ति मे ॥ ५३ ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ । अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ॥ ५४ ॥ अयं साहसिओ भीमो दुट्ठस्सो परिघावई । जंसि गोयममारूढो, कहं तेण न हीरसि ॥ ५५ ॥ पधावन्तं निगिण्हामि, सुयरस्सीसमाहियं । न मे गच्छइ उम्मग्गं, मग्गं च पडिवज्जई || ५६ ॥ आसे य इह के बुत्ते, केसी गोयममध्यवी । केसिमेवं बुवंतं तु, ४४ ॥ ।। ४५ ।। ४६ ॥ ४७ ॥ ४८ ॥ T गोयमो इणमब्बवी ॥ ५७ ॥ ५८ ॥ ॥ ५९ ॥ ॥ ६० ॥ साहसिओ भीम, दुट्ठस्सो परिधावई । तं सम्मं तु निगिण्हामि, धम्मसिक्ख इ कन्थगं ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा कुप्पहा बहवो लोए, जेहिं नासन्ति जन्तुणो । अद्धाणे कह वट्टन्ते, तं न नाससि गोयमा जे य मग्गेण गच्छन्ति, जे य उम्मग्गपट्टिया । ते सधे वेइया मज्जं, तो न नस्सामहं मुणी ।। इइ के कुत्ते, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु, कुष्पवयणपासण्डी, सबै उम्मग्गपट्टिया । सम्मग्गं तु जिणक्खायं, ६१ ॥ (४०) गोयमो इणमब्बवी ॥ एस मग्गे हि उत्तमे ॥ ३७ ॥ ३८ ॥ ३९ ॥ ४० ॥ ४१ ॥ ४२ ॥ ६२ ॥ ६३ ॥
SR No.022590
Book TitleSiddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, agam_uttaradhyayan, & agam_nandisutra
File Size14 MB
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