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________________ (११४) श्रीजैन सिद्धान्त-स्वाध्यायमाला. 1 धम्म हाओ, इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआया, सुयपरिग्गहा, तोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओत्रगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति, दस धम्मकहाणं वग्गा, तत्थ णं एगमेगा धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाई, एगमेगाए अक्खाइयाए पंच पंच उवाक्खाइया सयाई एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच पंच अक्वाइय उवक्खाइयासयाई एवामेव सपुबावरेणं अट्ठाओ कहाणगकोडीओ हवंतित्ति समक्खायं । नायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिजाओ निज्जुत्तीओ संगहणीओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ । से गं अंगट्टयाए छट्ठे अंगे, दो सुयक्खंधा, एगूणवीसं अज्झयणा, एगूणवीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जा पथसहस्सा पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा अणंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जति उवदंसिज्जंति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विष्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ, से त्तं नायाधभ्मकहाओ ६ || सू० ।। ५० ।। से किं तं उवालगदसाओ ? उवासगदसा - सुणं समणोवासयाणं नगराई, उज्जाणाई, चेइयाई. वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापिवरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ इहलोइयपरलोइया इडिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआगा, सुयपरिग्गहा. तवोत्रहागाई सीलव्वयगुणवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववास पडिवज्जणया, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खांणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चाईओ, पुणो हिलाभा, अंतकिरियाओ आघविज्जति उदासगदसाणं परिता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेजाओ संग्रहणीओ, संखेजाओ पडिवत्तीओ । से गं अंगट्टयाए सत्तमे अंगे, एगे, एगे सुयक्खंचे, दस अज्झनणा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा अनंता थावरा, सासयकड निबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविजंति पन्नविजति परूविजति दंसिजति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविजह से चं उवासगदसाओ ७ ॥ ० ॥ ५१ ॥ सं किं तं अंतगडदसाओ? अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराई उज्जाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिचागा, पवज्जाओ परिआगा, सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाईं, पाओवगमणाई, अंतकिरियाओ, आघविजति; अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणी, संखेज्जाओ पडिव - 1 ओ से गं अंगडयाए अट्टमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, अट्ठवग्गा अट्ठ उद्देसणकाला, अट्ठ समुद्देसणकाला संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं; संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासयकड निबद्ध निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पन्नविज्जंति पर विज्जंति, डंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति से एवं आया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविजह से तं अंतगडदसाओ ८ ॥ ० ॥ ५२ ॥ से किं तं अणुत्तरोववाहयदसाओ?
SR No.022590
Book TitleSiddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Hansraj
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, agam_uttaradhyayan, & agam_nandisutra
File Size14 MB
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