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________________ भ्राता के पुत्रना संबंध थी केटली य वार जोडाई चूकेल छे. कर्मराजनी जाळमां संबंधनी सरखाई शोधी पण जडे तेम नथी. वीतरागना वचन मुजब सर्वे आत्मा पथिक तुल्य छे, ए सिवाय न तो माता के न तो पिता, नथी तो प्रिया के नथी तो संतान, अने तेवी ज रीते तो न भाई के न तो बहेन शरण आपनार थई शके छे. ज्यां पोते ज पराधीन छे त्यां बीजाने शरणभूत थाय पण केवा प्रकारे? रंक आत्मा कोटि द्रव्यनुं दान क्याथी करी शकवानो? शरण तो ते महात्मानुं लेवू घटे के जेणे त्रण लोकमां परम ऐश्वर्यता साधी छे. एवी ऐश्वर्यतानी साधना अर्थे हे शिरछत्र ! हुं आपनी अनुज्ञा चाहुं छु. आपना हार्दिक आशीर्वाद वगर मारु ईप्सित कार्य सधाय तेम नथी, तेथी आप उभय राजीखुशीथी मने रजा आपो. तमे सारी रीते समजो छो के आप वडिलोनी अनुज्ञा विना भगवंत इंद्रभूति मारो स्वीकार करे तेम नथी. वळी विनय प्रधान जैनधर्ममां मारा जेवानुं स्वच्छंदी वर्तन तलमात्र चाली शके तेम पण नथी. एम करवू ते मारो पुत्र तरिकेनो धर्म पण नथी; माटे आप अंतरना उमळकाथी हर्षपूर्वक मने अनुज्ञा आपो." ____ मातपिता पण अरिहंतदेवना उपासक हता. संसारनी परिस्थितिने समजनारा हता तेथी तेओए महोत्सवपूर्वक पुत्रने श्रीमहावीरस्वामीने हस्ते प्रव्रज्या अपावी. कुमार पण गुरुजी- बहुमान करवापूर्वक शास्त्रना अध्ययनमा तेम ज क्रियाकलापमा तद्रूप बन्यो. अंतरना उल्लासथी साधुधर्मपालन करवा लाग्यो. वयमां बाळ छतां ज्ञानथी अबाळ (पंडित) बन्यो, स्खलना वगर चारित्रधर्ममां दिवसानुदिवस विशुद्धिने धारण करी गुरु साथे विहरवा लाग्यो. आम छतां बाळस्वभावसुलभ केटलीक स्खलनाओ-त्रुटीओ थई जती. ___ एकदा प्रात:काळमां क्षुधातुर थवाथी कोई श्रेष्ठीना घरमां अतिमुक्तक मुनि गोचरी लेवा गया. ज्यां 'धर्मलाभ' शब्दनो उच्चार करी ऊभा त्यां शेठनी पुत्रवधूए हास्य करतां प्रश्न कयों के–“हे क्षुल्लक मुनिवर ! आटली जल्दी उतावळ केम करी?" तेनी आवी अपूर्व ने मार्मिक वाणी सांभळी चमत्कार पामेला कुमारे जवाब आप्यो के–'यज्जानामि तन्न जानामि शेठनी पुत्रवधूने आ वाक्यमुं रहस्य न समजायुं एटले तेणे पुन: प्रश्न को–“आपे शुं का ? मने बराबर समजावो.” “भगिनी ! तमारा प्रश्ननो आशय तो ए हतो के ‘मने आटली नानी वयमां दीक्षा लेवानी उतावळ केम थई आवी ?' में जणाव्यु के 'यज्जानामि' एटले मृत्यु गमे ते समये जरूर आववानुं छे ए वात हुं जाणुं छं परंतु 'तन्न जानामि' फक्त जे नथी जाणतो ते एटलुंज के ए कई अवस्थामां आवशे? बाल्यकाळ एने माफक आवशे के वृद्धावस्थाने ते पसंद करशे? अने ज्यां आ स्थिति होय त्यां पछी उतावळनो प्रश्न ज केवो? मारी पासे एवं कोई विशिष्ट ज्ञान नथी के जेथी मृत्युना आगमननी चोक्कस तिथि वार अवधारी शकाय तेथी उतावळ कहेवाय पण केम?" शेठनी पुत्रवधूए बाळसाधुना आ रहस्यपूर्ण वचनो श्रवण करी सम्यक्त्वमूळ बार प्रकारना व्रतयुक्त श्रावकधर्म ग्रहण करीने शुद्ध अन्नपानादिकथी मुनिश्रीने प्रतिलाभ्या. एकदा वर्षाऋतुमां धरती पर चोतरफ जळ पथराई रह्यं छे, विजळीओना चमकार ने वादळाना गर्जारव पछी मुशळधार वरसाद वरसी रह्यो छे, जाणे सृष्टिसुंदरी हर्षभर्यु स्नान करी रही होय तेवू श्रीगच्छाचार-पयन्ना- ७८
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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