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________________ मासकल्प कर्यो होय ते वसतिमां साधुए न रहेवुं एटले के चातुर्मास करेल स्थानमां चातुर्मास उपरांत एक दिवस पण न रहेवुं, जो रहे तो कालातिक्रान्त वसतिनो भोगवनार बने अने दंड-प्रायश्चित आवे. आवी ज रीते मासकल्प उपरांत एक दिवस वधु रहे तो पण ते दोष लागे. २ उपस्थापना - जे वसतिमां चातुर्मास करेल होय ते वसतिमां आठ मास वर्ज्या विना तेमज मासकल्प कर्तुं होय ते वसतिमां बे मास पहेला आवे तो उपस्थापना दोष लागे एटले के जे स्थानमां चोमासुं कर्तुं होय ते स्थानमां आठ महिना व्यतीत थया पूर्वे आवे तो वास न करवो तेमज मासकल्प कर्यु होय तो बे महिनानो समय पसार थया बाद आववुं. आ प्रमाणे न वर्ते तो उपस्थापना दोष लागे अने आलोयण आवे कोई कोई आचार्य एम कहे छे के- जे वसतिमां चातुर्मास करेल होय ते स्थानमां बे चातुर्मा जेटलो बीजो समय व्यतीत थई जवा बाद रहेवुं. ते प्रमाणे न वर्ते तो पण उपस्थापन दोष लागे. ३ अभिक्रांत - जेटली वसतिनुं बीजाए सेवन करेल होय ते अभिक्रांत वसति कहेवाय, तेवी दोषव्याप्त वसतिमां साधु रहे तो ते अभिक्रांत दोषनो भागी थाय ४. अनभिक्रान्त आधाकर्मी दोषवाळी वसतिमां बीजा कोईए वास करेल होय ते. ५. वज्जा - कोई गृहस्थे पोताना निमित्ते मकान चणाव्यं होय ते साधुने वसति माटे आपे अने पोते पोताना माटे नवुं चणावे तो ते वसतिमा रहेनार साधु वज्जा दोष लागे अगर तो कोई गृहस्थे पोताने माटे तंबू ऊभो कराव्यो होय अने ते तंबू साधु वसति माटे आप्या पछी पोताने माटे बीजो नवो तंबू ऊभो करावे तो पण साधुने आ दोष लागे. ६ महावज्जा अन्यतीर्थिक, सन्यासी, बावा, पाखंडी निमित्ते आरंभ करीने जे वसति चणावी होय तेवी वसतिमां साधु जो वास करे तो आ दोष लागे, ७ सावद्य - कोई पण एक साधुने निमित् . करेल वसतिमां रहे तो आ दोष लागे, ८ महासावद्य - सर्व साधुओने माटे करेल वसतिमां पोते एकलो ज रहे तो आ दोष लागे, ९ अल्पक्रिया-जे वसतिमां पूर्वे कही गयेल मूळगुण, मूळोत्तरगुण अने उत्तरोत्तरगुणना जे दोषो वर्णव्या ते न होय, तेमज कालातिक्रांतादि दोष रहित होय अने गृहस्थे पोताने माटे बनावीने तेमां साधु निमित्ते कई पण आरंभ समारंभ न कर्यो होय अगर तो कई पण वस्तु अघी - पाछी न करी होय, काजो पण न लीधो होय तेवी वसति अल्पक्रिया वसति जाणवी. आवी वसतिमां निवास करतां साधुने कोई पण प्रकारनो दोष न लागे. अहीं 'अल्प' शब्द अभाववाचक छे, एटले अल्पक्रियानो अर्थ क्रियारहित अगर तो सर्व दोष रहित वसति जाणवी. आ जणावेल नव प्रकारनी वसति पैकी छेल्ली नवमी 'अल्पक्रिया' वसतिनी पसंदगी करवी. आ वसति मळे त्यां सुधी आठ प्रकारनी वसतिनो उपयोग पण न करवो. आ प्रमाणे उत्सर्गमार्ग जाणवो. - - हवे अपवादमार्ग दर्शावतां कहे छे के अल्पक्रिया नामनी नवमी वसति न मळे तो प्रथम कालातिक्रांत वसति ग्रहण करवी, ते प्रथम वसति पण न मळे तो बीजी उपस्थापना वसति स्वीकारवी. ते बीजी न मळे तो त्रीजी, त्रीजी न मळे तो चोथी, चोथी न मळे तो पांचमी, पांचमी न मळे तो छट्ठी, छट्ठी न मळे तो सातमी अने सातमी न मळे तो आठमी वसति ग्रहण करवी; परन्तु प्रमाद राखी वसतिनी गवेषणा कर्या विना रहे तो दंड आवे - प्रायश्चित लेवुं पडे. जे आचार्य आवा प्रकारनी वसतिनो संग्रह करे तेने सदाचार्य जाणवा. श्रीगच्छात्चार—पयन्ना— 192
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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