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________________ “जे भिक्खू अविहीए वत्थं सिव्वइ, सिव्वंतं वा साइज्जइ, जे भिक्खू वत्थस्स एगं फालिअं गंठिअंकरेइ करेंतं वा साइज्जड़, जे भिक्खू वत्थस्स परं तिण्हं फालिअगंठियाणं करेइ करें। वा साइज्जइ, जे भिक्खू वत्थं अविहीए गंठेइ गंठेतं वा साइज्जइ, जे भिक्खूवत्थं अतज्जाएण गंठेइ जे भिक्खू अइरेगं वत्थं गवेसइ गवसंतं वा साइज्जइ जे भिक्खू अइरेगगहिअं वत्थं परेण दिवड्डाओ मासाओ धरेइ धरेंतं वा साइज्जइ।" [निशीथसूत्रप्रथमोद्देशके] - अर्थात् जे साधु अविधिपूर्वक वस्त्रने सीवे अगर तो सीवनारने सारो जाणे तो तेने आलोयण आवे. जेवी रीते गृहस्थो वस्त्रना बंने पडखाने मेळवीने सीवे छे तेवी रीते सीवे तो अविधिपूर्वक सीव्यु कहेवाय. तेवी रीते न सीववं. जे साधु वस्त्र फाट्या पछी तेने विशेष फाटतुं अटकाववा माटे फाटेला छेडानी गांठ वाळे अगर तो गांठ वाळनारनी अनुमोदना करे तो पण प्रायश्चित ग्रहण करवू पडे. आम छतां पण अपवाद मार्ग जणाववामां आव्यो छे के- कारणवशात् बीजं वस्त्र उपलब्ध न थाय तो निरुपाये त्रण गांठ वाळी शकाय, परन्तु ते उपरांत चोथी गांठ वाळीने राखे तो दोष लागे. वळी जे साधु अविधिए वस्त्रनी गांठ वाळे अने गांठ वाळनारनी अनुमोदना करे तो तेने अतिचार लागे. जे साधु श्वेत वस्त्रनी साथे रक्तवर्ण वस्त्र सीवे अगर तो नवी नवी जातना - वस्त्रोनी साथे सीवे तो पण दंड लागे. जे साधु पोतानी जरूरीयात करतां वधारे वस्त्र याचे अगर तो याचनारनी प्रशंसा करे तो पण तेने दोष लागे. कदाच कोई साधुए विशेष वस्त्र ग्रहण कर्यां होय -राख्यां होय तो तेणे ते वस्त्रो पोतानी पासे दोढ मास करतां विशेष समय न राखवा. राखे अगर तो राखनारने सारो कहे तो आज्ञाभंगनो दोष लागे. ऊपर जणावेल आज्ञानो अमल न करतां भंग करे तो एक मासनो गुरुदंड आवे. आ वस्त्र संबंधी विशेष हकीकत श्रीनिशीथसूचना प्रथम उद्देशामां जणावेल छे. पात्रविवरण - जो साधु एक रुपियाथी ते त्रण रुपियानी किंमतनुं पात्र ग्रहण करे तो 'लघुमास' नुं प्रायश्चित आवे अने चार रुपियानी किंमतथी प्रारंभी अढार रुपियानी किंमत सुधीनुं स्वीकारे तो 'गुरुमास'नी आलोयणा आवे. आ उपरांतनी किंमतनुं पात्र ग्रहण करे तो जेम जेम विशेष किंमत तेम तेम दंड प्रायश्चित पण विशेष समजी लेवू. पात्रोना प्रकारो वर्णवतां कहे छे के – “तुंबयदारुअमट्टिअ- पायं उक्कोसमज्झिमजहन्नं । उप्परिवाडी गहणे, चाउम्मासा भवे लहुगा ॥१॥" अर्थात् पात्रो त्रण प्रकारनां छे - (१) तुंबक -तुंबाना, (२) दारुक-काष्ठना (लाकडाना) अने (३) मृत्तिक-माटीना. आ त्रण प्रकारना पण त्रण त्रण भेदो छ- (१) उत्कृष्ट, (२) मध्यम अने (३) जघन्य. आ पात्रोने विपरीत रीते ग्रहण करवाथी चार लघुमासी प्रायश्चित आवे. काष्ठनु उत्कृष्ट पात्र नंदिपात्र, मध्यम मात्रक अने जघन्य टोप्परक जाणवू. माटीनुं उत्कृष्ट पात्र गोळो, मध्यम पात्र घडो अने जघन्य पात्र कुलडु (कुंडु) जाणवू. आ प्रमाणे तेना नव भेदो थया. आ प्रत्येकना पण त्रण त्रण भेदो छे. (१) यथाकृतं, (२) अल्पपरिकर्म अने (३) बहु परिकर्म. (१) यथाकृतं-जे- मुख पूर्वे करेल होय तेने लेपादि करीने कृत्रिकारुपे मळे तथा पडिमाथी निवृत्त थयेल कोई पण श्रावक अथवा तो निह्नवे करेल होय अने श्रीगच्छाचार-पयन्ना-/
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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