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________________ विषयसुख तो भवपरंपरा वधारी दे छे; माटे तेनो त्याग करी *चार महाव्रतरूप धर्मनुं आचरण करो. भगवंतनी आज्ञा प्रमाणे जे तेनुं यथार्थ पालन करशे ते शिवलक्ष्मीना सुखने प्राप्त करशे. जे विषयसुखमां राचीमाची रहेशे ते चोराशी लाख जीवायोनिमां परिभ्रमण करवापूर्वक जन्म-मरणादिक अनेक प्रकारनां कष्टो सहन करशे. अनंत भवों पछी महापुण्यना प्रभावथी आ दुर्लभ मानवदेह मळ्यो छे तो प्रमादनो परित्याग करीने तेने सार्थक करी ल्यो.” आ प्रमाणे देशना सांभळी पर्षदा तो स्वस्थाने गई, परंतु लघुकर्मी थावच्चा कुमारनो आत्मा वैराग्यवासनाथी आर्द्र बन्यो. तेने परमात्मानी अमृत-वाणीमां परम सत्यनुं दर्शन थयुं अने ते ज समये भगवती दीक्षा अंगीकार करवानो दृढ निश्चय करी भगवंतने पोतानी इच्छा जणावी. भगवंते जणाव्युं के - " असार संसारमाथी सार ग्रहण करवारूप तमारो विचार प्रशंसापात्र छे. उत्तम कार्यमां कदापि ढील न करवी.” परमात्मानुं प्रेरक कथन सांभळी थावच्चाकुमार स्वमंदिरे आव्यो अने माताने पोतानी दीक्षाभिलाषा दर्शावी. थावच्चाकुमारनी वात सांभळतां ज माता धरणी पर ढळी पडी अने मूर्च्छित बनी गई. तरतज वायु अने शीतळ जळनो उपचार करतां ते अल्प समये सचेत थई त्यारे रुदन करती करती पोताना पुत्रने उद्देशीने कहेवा लागी के -" हे पुत्र ! मारे तो तुं एकनो एक ज लाडकवायो पुत्र छे. वळी हमणां ज तने अति रमणीय बत्रीश कन्याओ साथे परणाव्यो छे. ते स्त्रीओ तारुं स्मरण करीने मृत्युने वश थशे, माटे तारे दीक्षा लेवानी वात ज न उच्चारवी. आपणा गृहमां विपुल धन छे, कमावानी कई पण चिंता करवा जेवुं नथी माटे आ देवांगना सदृश रमणीओ सा यथेच्छित भोगविलास भोगव. संतानादिक थया पछी अने आ मळेल भोगविलासनी सामग्रीनो उपयोग कर्या पछी तुं सुखपूर्वक संयम स्वीकारजे. हुं पण तेटला समयमां स्वर्गवासी थई जईश, तने कोई निषेध नही करे माटे पछी श्रीनेमिनाथ भगवंत पासे प्रव्रज्या ग्रहण करजे. दीक्षा लेवानी वात करवी अने ते पाळवी ते बने वच्चे महद् अंतर छे. तारी वय लघु छे. चारित्र खांडाना धार जेवुं छे अने तेमां पण केशनुं लोचन आदि क्रिया कायक्लेश उपजावनारी छे, माटे हे पुत्र ! तुं दीक्षानो विचार मुलतवी राखी मनुष्यजीवननो भोगविलास भोगववारूप लहाव ग्रहण कर.” मातानुं आवुं स्नेहाळ कथन सांभळी थावच्चाकुमारे कह्यं के— “हे माता ! तमे जे सुख भोगववानुं कहो छो ते बधुं असार ने अनित्य छे. ते सुखनुं फळ नरकप्राप्ति छे. वळी आयुष्यनों विश्वास नथी. वळी कोई जाणी शकतुं नथी के कोण पहेलां अने कोण पछी मृत्यु पामवाना छे. धन तो चंचळ होवाथी कोई पण स्थळे स्थिर रहेतुं नथी. ज्यां पुण्यरूपी सामग्री पूरी थई के धन पग करीने चाल्युं जाय छे माटे हे माता ! मारा प्रत्येनी ममता अने मोहनो त्याग करी मने मोक्षप्राप्तिना निमित्तरूप संयम स्वीकारवा आज्ञा आपो.” * श्री ऋषभदेव अने महावीरस्वामी सिवायना बावीश तीर्थंकरने समये चार महाव्रत होय छे; ज्यारे पहेला अने छेल्ला तीर्थंकरोने समये पांच महाव्रत होय छे. पांच महाव्रतना नाम आ प्रमाणे - १ प्राणातिपातविरमण, २ मृषावादविरमण, ३ अदत्तादानविरमण, ४ मैथुन विरमण अने ५ परिग्रह सर्वथा त्यागरूप. श्रीगच्छाचार - पयन्ना- २६
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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