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________________ आ प्रमाणे दिव्यसंगीत, नृत्य तथा नाटक दर्शावी, पोतानी ऋद्धि संकेली बहुपुत्रिका देवी जेवी आवी हती तेवी चाली गई तेना जवा बाद श्रीगौतमस्वामीए परमात्माने प्रश्न कर्यो के हे भगवंत ! देवीए आटली बघी विकुर्वेली ऋद्विक्यां गई ? परमात्माए जवाब आप्यो के - एक मोटी धर्मशाळामांथी बहार निकळता हजारो माणसो जोई शकाय, पण ते पाछा धर्मशाळामां दाखल थतां ए धर्मशाळा ज जणाय तेम ते देवीए पोताना शरीरमांथी विकुर्वेला घणा कुमार- कुमारिकाओ जणाया ते सर्व पाछा तेना वैक्रिय शरीरमां समाई गया. आटला समाधान पछी श्रीगौतमस्वामीए बीजो प्रश्न कर्यो के-हे भगवंत ! आ बहुपुत्रिका देवीने आटली बघी ऋद्धि शाथी प्राप्त थई ? पूर्वभवमां ते कोण हती अने तेणे केटलुं पुन्य कर्तुं हतुं ? भगवंते बहुपुत्रिका देवीनो पूर्वभव वर्णवतां कह्यं के वाणारसी नगरीमा अंबसाल नामनुं चैत्य हतुं. ते नगरीमां भद्र नामनो सार्थवाह हतो. तेने सुभद्रा नामनी पत्नी हती. भद्र श्रेष्ठी बहु ऋद्धिवाळो, प्रसिद्ध अने दरेक वातमां निपुण हतो. सुभद्रा पण स्वरूपवान, सुकुमाळ ने सारा स्वभावनी हती, परन्तु तेने एक पण संतान थयुं नहोतुं तेना हृदयमां हमेशां वांझीयापणानो संताप रह्या करतो. एकदा रात्रिए पाछला पहोरे जागी उठतां सुभद्रा कुटुंबचिंता करवा लागी. तेना मनमां विचार आव्यो के-हुं भद्र सार्थवाह साथे मनगमता भोगविलास भोगवुं छु छतां अत्यार सुधी मने संसारसुख सांपड्युं नहीं. खरेखर मने धिक्कार छे ! हुं हीन पुण्यशाळी छं. धन्य छे ते स्त्रीओने जे पोताना खोळामां दीकराने बेसाडीने रमाडे छे, तेनुं लालनपालन करे छे, पोतानी छातीए चांपी स्तनपान करावे छे, तेने स्नानादिक करावे छे, तेने मस्तके चुंबन करे छे, काखमा बेसाडीने रमाडे छे, बालकना काला काला वचन सांभळी हर्षित थाय छे, तेने प्रिय वचनथी बोलावी राजी थाय छे. आ प्रमाणे संतान संबंधी दुःखनी चिंता करती झूरती हती. एवामां पांच समिति अने त्रण गुप्तिनुं पालन करनारी, ब्रह्मचारिणी, आगमनी जाण सुव्रता साध्वी सपरिवार ग्रामनुग्राम विहार करतां करतां वाणारसी नगरीमा आवी पहोंच्या. शुद्ध स्थानक तपासी त्यां वास कर्यो. एकदा तेना संघाडानी बे त्रण साध्वीओ गोचरी माटे परिभ्रमण करती शुभद्राना आवासमां गई. तेओने आवती जोई सुभद्रा पोताने धन्य समजती आसन ऊपरथी उठी, सात-आठ पगंला सामा जई, वंदन करीने चारे प्रकारनो आहार भावपूर्वक वहोराव्यो. पछी साध्वीओने नम्र वाणीमां विज्ञप्ति करवा लागी के-हे आर्याओ ! हुं भद्र साथवाह साथे उत्तम प्रकारना भोग भोगवुं छु छतां मने संतान प्राप्ति थई नथी, माटे जे स्त्रीओ पोताना उत्संगमां पुत्रादिकने रमा छे ते खरेखर धन्य अने हुं हीणभागी छं. हे पूज्य ! तमे विलक्षण छो, शास्त्रकुशळ छो, घणा ग्राम-नगरादिकमां तमे विचरण कर्तुं छे, राजा कोटवाळ, प्रधान श्रेष्ठीओ विगेरे अनेक व्यक्तिना संसर्गमा आव्या छो, मोटा-मोटा सार्थवाहना घरे तमे गयेला छो तो हुं तमने विज्ञप्ति करुं छे के-एवी कोई विद्या, मंत्र तमारी जाणमां होय तो ते मने जणावो अगर तो कई औषध होय तो ते आपो के जेथी मारी मनोवांछा पूर्ण थाय. एवो कोई पण उपाय होय ते बतावो के जेथी मारे एक पुत्र अने पुत्री श्रीगच्छाचार- पयन्ना- २८४
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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