SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुगुणषत्रिंशिकावृत्तिमां शरीर, वचन अने काया एत्रण प्रकारनो तप कह्यो छे. १ शरीर तप-देव, साधु, गुरु, सिद्धांतनी पूजा-बहुमान करे, शौच पाळे, ब्रह्मचर्य पाळे, सरळता राखे कपट न करे तेमज हिंसा न करे ते शरीर तप कहेवाय, २ वचनतप-बीजाने उद्वेग थाय तेवू न बोले, सत्य प्रिय हित ने मित वाक्य ज बोले, स्वाध्याय करे, सूत्राभ्यास वधारे ते वचन तप जाणवो. ३ मन तप-मनने आनंदित राखे, मौनपणुं राखे. दुर्ध्यान न करे, मन निर्मळ राखे. आत्रण प्रकारना तप अनुक्रमे एकथी एक उत्कृष्ट समजवा. सात्त्विक, राजस अने तामस-ए त्रण प्रकारनो पण तप होय छे. फळनी वांछा विना करातो तप सात्त्विक, पूजा, सत्कार अने बहुमाननी इच्छाथी करातो तप ते राजस, अने आत्माने पीडीने बीजाना नाश माटे जे कराय ते तामस कहेवाय छे. भावना बार प्रकारनी छे, ते आ प्रमाणे-१ अनित्य भावना-तारो संबंध, तारा संयोगो, तारी चीजो नित्य तारी पासे रहेवानी नथी, तारुं शरीर पण सदाने माटे तारुं नथी. २ अशरण भावणा-तने व्याधि थाय तो पीडामां कोई भाग पडावे तेम नथी, दुःखमां कोई टेको आपी शके तेम नथी, तारे तारो ज आधार छे. ३. संसार भावना-समग्र संसारमा कर्म राजा जे नाटक करावी रह्या छे अने आखो आ भवप्रपंच चाली रह्यो छे तेनी विवेक पर्वते ऊभा रही विचारणा करवी. ४. एकत्व भावना-आ प्राणीनो आत्मा एकलो ज छे, तेनु कोई नथी, ते पण कोईनो नथी, ए एनो पोतानो ज मालेक छे. ५. अन्यत्व भावना-आपणो आत्मा सर्वथी अन्य छे-भिन्न छे, एन कोई सगं नथी, एनं पोतानं शरीर पण एनाथी अन्य छे. आ स्वपरभाव विचारणा करवी. ६. अशुचि भावना-मांस, रुधिर, मेद, हाडका, लोही अने चामडीनुं बनेलं आ शरीर अपवित्रतानी पोटली छे, एना ऊपर मोह करवा जेवं नथी, तेनो खरेखरो उपयोग करी लेवा जेवू छे. ७. आश्रव भावना-जीव अव्रतीपणाथी, मिथ्यात्वथी, कषायोथी अने मन-वचन कायाना योगोथी कर्म बांधे छे, कर्मथी भारे थाय छे संसारमा रखडे छे. ८. संवर भावना-क्षमादि दश यतिधर्मो, आठ प्रवचनमाता, बार भावनाओ, बावीश परिषहो विगेरे द्वारा आवतां को रोकी शकाय तेवी विचारणा. ९ निर्जरा भावना-वृत्ति ऊपर अकुंश, अनशनादि बाह्य तपस्या तथा विनय-वैयावच्चादि आंतर तपस्याथी लागेलां कर्मोनी मुक्ति वगर भोगवे शक्य छे तेवी विचारणा. १०. धर्मसूक्तता भावना-आत्मानुं स्वरूप, कर्म स्वरूप, बनेनो संबंध, मुक्तिमार्ग, तेना उपाय अने तेनु उपादेयपणुं धर्ममां बताव्यु छे तेनी पुष्टिरूप विचारणा. ११ लोकपद्धति भावना-लोकाकाशनुं स्वरूप, लोकनुं स्वरूप, तेमां थतां आत्मानां जन्म मरणनी स्थिति अने रखडपाटानां स्थानोनी विचारणा * १२. बोधिदुर्लभभावना-साचा मार्गनी ओळखाण, प्राप्ति अने संरक्षण मश्केल छे पण ए रत्नत्रयीनी प्राप्ति करवी ए खास कर्त्तव्य छे तेवी विचारणा. आ बार प्रकारनी भावाना उपरांत मैत्री, प्रमोद कारुण्य अने माध्यस्थ्य-ए भावना गणतां सोळ भावना पण थाय छे. * भावनानं विशेष स्वरूप समडवा माटे उपाध्याय श्रीविनयविजयजीकृत “शांत सुधारस" ग्रन्थ वांचवो. ते संस्कृत पद्य ऊपर श्रीयुत मोतीचन्द गिरधरलाल कापडियाए गुजराती भाषामा "शांत सुधारस" ना लखेल बन्ने भागो खास वाचवा लायक छे. विवेचन बहु ज सुन्दर अने सरल भाषामां समजी शकाय तेवू छे. श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २७१
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy