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________________ चक्रावे चडशे अने तेमां उलजाई आ वहाण नाश पामशे, हुं पण मृत्यु पामीश. जो तमारे बचवुं होय अने पंचशैल द्वीपे जवुं होय तो सामुं जे वडलानुं झाड देखाय छे तेनी नीचे थी वहाण आगळ के तरत ज तेनी शाखा पकडी लेजो. आ विशाळ वटवृक्ष ऊपर रात्रिना पंचशैल द्वीपना पंखी ओ आश्रय लेवा आवशे अने प्रात:काळ थतां उड़ी जशे ते समये भारंड पक्षीना पगे लटकीने तमे त्यां जई शकशो. स्वार्थ सिद्ध करवा माटे मानवी शुं न करे ? सोनीए ते प्रमाणे कर्तुं अने पंचशैल द्वीप पहोंच्यो पण हासा ने प्रहासाने क्यां जई गोतवी ? ते उद्यानमा आमतेम भटकवा लाग्यो तेवामां हासा प्रहासा तेनी नजरे चढी. पोतानी महेनत अने साहस सफळ थयां जाणी तेणे संपूर्ण संतोष अनुभव्यो. बने देवीओने तरत ज पोताने आवासमां लई जवा कह्यं. नीतिकारे खरेखर साधुं ज कह्यं छे के 9 दिवा पश्यति नो घूकः, काको नक्तं न पश्यन्ति । अपूर्व कोऽपि कामान्धो, दिवानक्तं न पश्यन्ति ॥ १ ॥ घूव दिवसे जोई शकतुं नथी, कागडो रात्रे जोतो नथी, परंतु कामान्ध पुरुष तो दिवसे के रात्रे पण कशुं जोई शकतो नथी, अर्थात् सारासारनो सर्वथा विवेक ज भूली जाय छे. बंने देवीओए तेना उत्कट कामाग्नि ऊपर शीतळ जळ रेडवुं शरू कयुं, जे सांभळतां ज अनंगसेनना होशकोश उडी गया. पोतानी मूर्खाईनुं तेने हवे बराबर भान थयुं, पण हवे थाय शुं ? बने देवीओए तेने कह्यं “प्रिय अनंगसेन ! तारी आ साहस- कथा जरूर प्रशंसापात्र छे, पण अमारा देहना आलिंगन सामान्य अने सस्ता नथी. अमारुं प्रथम दर्शन तो तने लोभाववानुं हतुं. कामी मानवीना हाथमां अमे रमकडां नथी बनतां. जो तने अमारा संगनी खरेखर उत्कट इच्छा ज होय तो बीजी परीक्षा पसार- पास कर. ‘आवतां भवमां हुं हासा-प्रहासानो पति थाउं' एवा नियाणापूर्वक मरण स्वीकारो . तेम करवाथी तमारो देवयोनिमां जन्म थशे अने तमने आ सप्त धातुमय औदारिक शरीरने बदले अमारा जेवुं मनोहर वैक्रिय शरीर प्राप्त थशे.” हासा-प्रहासानुं सूचन सांभळतां ज अनंगसेनना गात्रो गळी गयां, कामाग्निनो तीव्र ताप शमी गो. मनुष्य देहथी कंई शुक्रवार थवानो नथी एवा विचारथी तेना मुख ऊपर निराशा फरी वळी. तेना मुखमांथी सहसा बोलाई जवायुं के -“मारी दशा धोबीना श्वान जेवी थई. न रह्यो घरनो न रह्यो घाटनो. देवांगनाओ मळी नहीं अने मानवललनाओ हती ते पण अळगी थई गई.' " हासा-प्रहासाए तेनी व्याकुळतां पारखी लई कह्यं: “सुवर्णकार ! रंच मात्र तमारे निराश थवानी जरुर नथी. अमो तमने तमारा नगरमा क्षणभरमा सुखपूर्वक पहोंचाडी दईशुं. तमारो अमारा पर साचो स्नेह होय तो अमे जणावेला मार्गे चालजो. साचा स्नेह विना मनगमतुं सुख नहीं माणी शकाय.” श्रीगच्छाचार- पयन्ना— २६४
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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