SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एगो एगिथिए सद्धिं जत्थ चिट्ठिज्ज गोयमा !। संजइए विसेसेणं, निम्मेरं तं तु भासिमो ॥१३॥ दढचारित्तं मुत्तं, आइज्जं मयहरं च गुणरासिं । इक्को अज्जोवेई, तमणायारं न तं गच्छम् ॥१४॥ [अतिदुर्लभभैषज्यं, बलबुद्धिविवर्धनमपि पुष्टिकरम् । आर्यालब्धं भुज्यते, का मर्यादा तत्र गच्छे? ॥९२ ।। एक एकाकिस्त्रिया सार्थ, यत्र तिष्ठेत् गौतम !। संयत्या विशेषेण, निर्मर्यादं तं तु भाषामहे ॥९३ ।। दृढचारित्रां निर्लोभां, आदेयां महत्तरां च गुणराशिम् । एकाकी अध्यापयति, सोऽनाचारः न स गच्छः ॥१४॥ गाथार्थ-जे गच्छमां साधुओ साध्वीए आणी आपेल, बळ ने बुद्धि वधारनारा पुष्टिकारक, अति दुर्लभ औषध-भेषजनुं सेवन करतां होय ते गच्छमां मर्यादा क्याथी होय? एकलो साधु एकली स्त्री अथवा साध्वी साथे रहे तेने हे गौतम ! अमे विशेष प्रकारे मर्यादा विनानो ज गच्छ कहीए छीए. वळी दृढ चारित्रशील, निर्लोभी, आदेय वचनवाळी, महामतिवंत अने गुणना निधानरूप महत्तरा (सर्व साध्वीओनी स्वामिनी) साध्वीने साधु एकलो भणावे तो ते पण अनाचार ज छे. विवेचन-बाणुमी गाथामां आपेल मेरा शब्द देशी छे अने तेनो अर्थ मर्यादा थाय छे. जे गच्छ मर्यादावाळो नथी ते तीर्थंकरनी आज्ञा बहार छे. दुष्प्राप्य, बुद्धि वधारनार, शक्ति-दाता एवं औषध पण जो साध्वीथी लवायेल होय तो साधुथी वापरी शकाय नहीं. साधुने एकली स्त्री साथे वात करवानो पण निषेध कयों छे, तो एकली साध्वी साथे वास के वार्तालाप तो थाय ज क्यांथी? एकांतवास बह बुरी चीज छे. एकांतमा रहेतां एकबीजाना अंग-प्रत्यंगो जोवाय छे अने परस्परना विशेष वार्तालापथी मन चलित थई जाय छे. एकदा श्रेणिक महाराजा अने राणी चेलणाने भगवाननी पर्षदामां जोईने तेम ज तेओना रूपादिकनो विचार करीने श्रीमहावीर भगवंतना साधु तथा साध्वीए भवांतरमा तेवा थवानुं नियाणुं कर्यु हतुं. श्रीमहावीर परमात्माना दृढ अने क्रियापात्र साधु-साध्वीनुं मन चलित थई गयुं तो पछी बीजा सामान्य साधु या साध्वी माटे तो शुं कहेवू? माटे ज शास्त्रकारे एकांतमां तो स्त्री साथे वार्तालाप करनार साधुने मर्यादाहीन अने साध्वी साथे वास करनारने विशेष प्रकारे मर्यादाहीन कहेल छे. चारित्रना स्थिर परिणामवाळा, स्पृहा रहित, गुणवान अने महत्तरा (सर्व साध्वीओनी स्वामिनी) पदने प्राप्त थयेल एवी वृद्ध साध्वी पण जो साधु पासे एकांतमां भणवा बेसे तो ते गच्छ अनाचारी छे. साधुओना समूहमा जे स्थान आचार्य- छे तेवू ज स्थान (प्रतिष्ठा) महत्तरा (आचार्याणी)नुं छे. महत्तरा पदवी क्यारे प्राप्त थाय ते संबंधमां का छे के-“सीलत्था कयकरणा, कुलजा परिणामिया श्रीगच्छाचार–पयन्ना- २४२
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy