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________________ बाद श्रीभद्रबाहुस्वामीए १ आचारांग, २ सुयगडांग, ३ आवश्यक ४ दशवैकालिक, ५ उत्तराध्ययन, ६ दशाकल्प, ७ बृहत्कल्प, ८ व्यवहारसूत्र ९ सूर्यप्रज्ञप्ति, १० ऋषिभाषित, ए दश सूत्रोनी निर्युक्तिओ रची, अने जैनशासननी अपूर्व प्रभावना करी. पंचम श्रुतकेवली एवं मानवतुं बिरुद पण प्राप्त कर्यु. छेवटे आयुष्य नजीक जाणी, अणशण स्वीकारी समाधिमरणे स्वर्गे सिधाव्या. वराहमिहिरनी माफक जे गुरुना अवर्णवाद बोले ते गच्छ सुगच्छ न कहेवाय. हजु पण सुगच्छना विशेष लक्षणो दर्शावतां कहे छे के जत्थित्थीकरफरिसं, अंतरियं कारणे वि उत्पन्ने दिट्ठिविसदित्तग्गी - विसं व वज्जिज्जए गच्छे ॥ ८३ ॥ बालाए वुड्ढाए, नत्तुअदुहियाइ अहव भइणीए । नय कीरइ तणुफरिसं, गोयम ! गच्छं तयं भणियं ॥ ८४ ॥ [ यत्र स्त्रीकरस्पर्श, अन्तरितं कारणेऽपि उप्पन्ने । दृष्टिविषदीप्ताग्नि- विषमिव वर्जयेत् गच्छे ॥८३॥ बालाया वृद्धाया नप्तृकाया दुहिताया अथवा भगिन्याः । न च क्रियते तनुस्पर्श, गौतम ! गच्छ: सको भणित: ॥ ८४ ॥] गाथार्थ- कारण उत्पन्न थये सते पण वस्त्रादिकनुं अन्तर करीने स्त्रीना हस्तादिकनो स्पर्श दृष्टिविष सर्प, प्रज्वलित अग्नि के हळाहळ झेरनी जेम जे गच्छमां त्यजी देवातो होय ते गच्छने सुगच्छ जाणवो. ८३ वळी बाळकुमारी, वृद्धा, पुत्री, पौत्री के बहेन विगेरेना शरीरनो पण स्पर्श जे गच्छमां न रातो होय ते गच्छने हे गौतम! सुगच्छ जाणवो. ८४ विवेचन - वस्त्र प्रमुखथी ढांकेला स्त्रीना हस्तादिकनो स्पर्श करवानो निषेध कर्यो छे तो उघाडा अंगोपांगने माटे तो कहेवुं ज शुं ? पगमां कांटो वागी गयो होय, महाविषम व्याधि थयो होय छतां पण स्त्री-स्पर्श वर्ज्य वर्णव्यो छे तो विना कारणना स्पर्श माटे तो कहेवुं ज शुं ? ग्रंथकारे स्त्रीना स्पर्शने दृष्टिविष सर्प, प्रज्वलित अग्नि अने काळकूट झेरनी उपमा आपी छे उपर्युक्त त्रणे वस्तुथी प्राणी दूर रहे छे तेम साधुए स्त्री स्पर्शथी सदंतर वेगळा ज रहेवुं. लघुवयवाळी बालिकानो स्पर्श पण निषेध्यो छे तो यौवनवती स्त्रीने माटे तो कहेवापणुं ज क्या रह्यं ? वृद्धानो पण निषेध छे तो अनतिक्रांत यौवनवाळी एटले के लगभग सोल वर्षनी आदि लई चाळीश वर्षनी स्त्री माटे तो कहेवुं शुं ? आ करतां पण आगळ वधी ग्रंथकर्ता महापुरुष कहे छे के पोतानी पुत्री, पौत्री, बहेन विगेरे स्वजननो स्पर्श न करवो. पोताना कुटुंबीजनो साथे अकार्य करवानी कोई कल्पना पण न करी शके छतां पण शास्त्रकारे तेवी व्यक्तिओना करस्पर्शादिकनो निषेध फरमाव्यो छे तो बीजा माटे तो पूछवानुं ज क्या रह्यं ? आटला वक्तव्य ऊपरथी साबित थशे के जाज्वल्यमान अग्निनो स्पर्श करवो सारो परंतु स्त्री स्पर्श तो प्राणांते पण न करवो; कारण के तेथी व्रतभंगनो महादोष आवी पडे छे. श्रीगच्छाचार — पयन्ना- २२७
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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