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________________ [ यत्र चार्याभिः समं, स्थविरा अपि नोल्लपन्ति गतदशनाः । न च ध्यायन्ति स्त्रीणा-मड्गोपाङगानि स गच्छः ॥६२॥] गाथार्थ- वळी जे गच्छमां युवान तो शुं पण जेमना दांत पडी गया छे एवा वृद्ध मुनिजनो पण साध्वीओनी साथे निष्कारण वार्तालाप करता नथी तेमज स्त्रीओना अंगोपांगने सराग दृष्टिथी जोता नथी ते जगच्छ वास्तविक छे. विवेचन-गाथार्थ स्पष्ट छे. अंगो आठ छे- बे भुजा, बे साथळ, एक पीठ, एक मस्तक, एक हृश्य अने एक उदर (पेट). कान, आंख, नासिका, आंगळीओ प्रमुख उपांगो कहेवाय छे. सुगच्छवासी मोक्षार्थ मुनिजन साध्वी साधे संभाषण न करे तेम तेना अंगोपांगनुं स्मरण पण न करे. स्त्रीओना स्मरणथी चित्त व्याकुळ बने छे अने स्वधर्म के स्वाध्यायमा स्थिर रही शकातुं नथी. आज संबंधमां विशेष सावचेती राखवा शास्त्रकार फरमावे छे के वज्जेह अप्पमत्ता !, अज्जासंसग्गि अग्गिविससरिसी । अज्जाणुचरो साहू, लहइ अकित्तिं खु अचिरेण ॥ ६३ ॥ [ वर्जयताप्रमत्ता !, आर्यासंसर्गी: अग्निविषसदृशीः । आर्यानुचरः साधु-र्लभतेऽकीर्ति खु अचिरेण ॥ ६३ ॥] गाथार्थ - अरे अप्रमादी मुनिवरो ! तमे अग्नि अने विष ( झेर) नी जेवी अनर्थकारी साध्वीओनो संसर्ग त्यजी द्यो, कारण के साध्वीने अनुसरनारी साधु थोडा ज समयमा अवश्य सर्वत्र अपकीर्ति पामे छे. विवेचन - अप्रमादी मुनिओने पण साध्वी-संगनो निषेध कर्यो छे तो प्रमादी साधुओनी तो व जशा माटे करवी ? तेने पण संपूर्णतया निषेध समजी ज लेवो जोईए. जेम अग्नि पोताने अने पासे रहेनारने बाळे छे तेम साध्वीसंसर्ग उभयना चारित्रने दग्ध करे छे. झेरनुं कदापि पारखं करवामां आवतुं नथी, कारण के तेनो स्वभाव ज मृत्यु पमाडवानो छे तेम स्त्री-संसर्गनो दीर्घ दृष्टिथी विचार करीने ज शास्त्रकारोए निषेध कर्यो छे. वळी स्त्रीने वाघ अने सर्पनी पण उपमा आपवामां आवी छे. 'तंदुलवैचारिक प्रकीर्णकमां' कह्यं छे के- “जाओ चिय इमाओ इत्थियाओ अणेगेर्हि कइवरसहस्सेहिं विविहपासपडिबद्धेहि कामरागमोहेहिं वन्नियाओ वि एरिसाओ तं जहा - पगड़ विसमाओ, पियरूसपाओ, पियवयणवल्लरीओ, कइ अवपेमगिस्तिडीओ, अवराहसहस्सधरणीओ, प्रभवो रोगस्स.... असलिलप्पलावो समुद्दरओ ||” आ पाठथी स्त्रीने बाणुं विशेषणो आपवामां आव्या छे - १ विषम-कोईने खबर न पडे तेवा स्वभाववाळी, २ मनोहर रुसणावाळी-रोष, क्रोध करे तो पण भली लागे तेवी, ३ मिष्ट वचननी वेल, ४ कृत्रिम प्रेमनी नदी, ५ हजारो अपराधोनी भूमि, ६ रोगोना कारणभूत, ७ बळनो नाश करनारी, ८ पुरुषोनो विनाश करनारी होवाथी खाटकी सदृश, ९ लज्जानो नाश करनार, १० अविनयनो आवास, ११ कपटनी खाण, १२ वेरनुं निमित्त, १ ३ शोकनुं स्थान, १४ अमर्यादानो आश्रम, १५ रोगनुं घर, १६ दुष्ट चारित्री, श्रीगच्छाचार- पयन्ना- १७७
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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