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________________ तरीके-शाश्वती प्रतिमा यावत्कथिक कहेवाय, अने चैत्यमा रहेली जिनप्रतिमानो तो काळांतरे विलय थई जाय. बीजू दृष्टांत-श्रावकादिक स्थापना स्थापे ते इत्वरिक (अल्प काळनी) अने साधु पोताना गुरुनी स्थापना स्थापे ते यावत्कथिक कहेवाय. हवे त्रीजु द्रव्यआवश्यक जणावे छे-द्रव्यआवश्यक बे प्रकार- छे–(१) आगम अने (२) नोआगम. आगमद्रव्यावश्यक -आवश्यक सूत्रथी प्रारंभीने क्रिया सुधी सर्व शीख्यो होय, तेने भूले नहीं, हृदयमां स्थिर थई गयेल होय, अन्य कोई पूछे तो तत्काल कहे, श्लोक, पद तथा अक्षरनी संख्या पण जाणे, आदिथी अंत पर्यंत अने अंतथी आदि पर्यंत पाठ करी शके एटले क्रमोत्क्रम भणी शके, पोताना नामथी कोई बोलावे तो ऊंघमां पण जाणे के मारुं नाम कोईए लीधुं तेम शास्त्र-पाठ तेना हृदयमां जामी गयो. ज्यारे पूछे त्यारे जवाब मळे, जेवी रीते गुरु शीखवे तेवी रीते ज बराबर ग्रहण करी ले, एक पण अक्षर रही न जाय तेमज अधिक पण न बोले, एकबीजामां एकबीजा अक्षर मळी जाय तेम न बोले, अस्खलित-धाराबद्ध रीते बोले, सूत्र बोलतां पद भिन्न भिन्न बोले तेमज स्थान अने विरामनो बराबर ख्याल राखीने बोले, बिंदु के मात्रा पण न्यून न थाय तेमज अर्थ अध्याहार न रहे, घोषपूर्वक पूर्ण बोले, स्पष्ट रीते बोले अर्थात् मूंगो के बाळक बोले तेम न बोले, गुरु पासे वांचना लईने भणेल होय एटले के कोईनुं सांभळीने अगर तो पोतानी मेळे भणेल न होय, अर्थात वाचना, पृच्छना, प्रतिपृच्छना, धर्मकथा अने अनुप्रेक्षा-ए पांच प्रकारद्वारा शास्त्राध्ययन कर्यु होय. अही अनुप्रेक्षानो अर्थ उपयोगपूर्वक भणq ते थाय छे अने उपयोगपूर्वक पठन करवू ते द्रव्यआवश्यक नथी, भावआवश्यक छ तो विरोध नहीं आवे? आ शंकानो उत्तर आपतां जणावे छे के-उपयोग विना पूर्वे वर्णव्यां ते बधा गुणयुक्त बोले छे पण उपयोग नथी माटे तेने द्रव्यआवश्यक जाणवं. संबंधमां सात नयनो प्रसंग घटावी ते कथननी पुष्टि पण करे छे. १ नैगमनयना मते तो एक अनपयोगी ते एक आगमद्रव्यावश्यक तेवी रीते बे, त्रण अनुपयोगी ते बेत्रण आगमद्रव्यावश्यक. एवी जरीते जेटला अनुपयोगी तेटलां आगमद्रव्यावश्यक आगमद्रव्यावश्यक जाणवा. एवी ज रीते जेटला अनुपयोगी तेटलां आगमद्रव्यावश्यक जाणवा. २ एवी ज रीते व्यवहारनयनो पण मत जाणवो. ३ संग्रहनयनो मत एवो छ के-एक होय अथवा घणा अनुपयोगी होय तो पण एक ज द्रव्यावश्यक माने. ४ ऋजसूत्र पण एक ज कहे, तेथी विशेष न माने. ५-७ शब्द, समभिरुढ अने एवंभूत ए त्रण नयो तो आगमद्रव्यावश्यक मानता ज नथी, कारण के तेनुं कथन एवं छे के - जे जाणे छे ते अनुपयोगी होय ज नहीं. आ प्रमाणे आगमद्रव्यआवश्यकनुं स्वरूप संक्षिप्तमां जाणवू. हवे नोआगमद्रव्यावश्यकनुं स्वरूप दर्शावे छे. तेना त्रण भेद छे- (१) जाणगशरीरद्रव्यावश्यक, (२) भव्यशरीरद्रव्यावश्यक अने (३) जाणगशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त (भिन्न). १ जाणगशरीरद्रव्यावश्यक-आवश्यक सूत्रो, सुन्दर अध्ययन कर्यु होय तेवू शरीर, आ शरीर केतुं छे? अचेतन-जीव विनानु, श्वासोच्छ्वास रहित, अढी हाथनी शय्या प्रमाणवाळं, अणशण स्वीकारीने मोक्षे पहोंचेल-आवा शरीरने जोईने कोई विचारे के-पौद्गलिक देहद्वारा आत्महित साधी, कर्मनिर्जरा करी भूतकाळमां आ शरीरमा रहेला जीवे आवश्यकसूत्रनुं अध्ययन कर्यु शिष्यने ते सूत्रो शीखवाड्या पडिलेहणादिक क्रिया करी स्वशिष्योने दर्शाव्यु शिष्य श्रीगच्छाचार–पयन्ना-१६३
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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