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________________ शिलाओने मांस-मदिरा अने मधुथी लिप्त करे छे. आ जळचर मनुष्यो मांस-मदिरामां अत्यंत आसक्त होय छे. तेने कब्जे करवा माटे रत्नद्वीपवासी लोको मांस अने मदिराना कुंडा भरीने पडिसंतापदायक स्थानमा जाय छे. जेवामां जळचर मनुष्यो रत्नद्वीपवासी मानवीओने जुवे छे के तरत ज तेने मारवा दोडे छे. रत्नद्वीपना लोको मांस-मदिराना कुंडा त्यां मूकी दईने रत्नद्वीप तरफ पाछा वळी जाय छे. जळचर मनुष्यो ते कुंडाने जोईने त्यां थंभी जाय छे अने तेमाना पदार्थ खाई जाय छे. खाई लीधा पछी पण तरत ज रत्नद्वीपवासी प्राणियोनी पाछळ दोडे छे एटले तेओ पाछा मांस-मदिराना कुंडा मूकी दूर नाशी जाय छे. आ प्रमाणे करता करतां तेओ रत्नद्वीप समीप जळचर मनुष्योने खेंची जाय छे. ते लोकोए वज्रशिलाओमां पण मांसना लोचा चोंटाडेला होय छे, माछलिओ राखी मूकी होय छे, मधनुं चारे बाजु लेपन करेल होय छे. रत्नद्वीप पासे आवतां ज आ शिलाओ जळचर मनुष्यनी नजरे पडे छे एटले तेओ मांस-मदिरानी आसक्तिथी ते शिलामा दाखल थाय छे. आ शिलाओनो आकार फाडेला मुख जेवो होय छे. जळमनुष्यो ते मांस-मदिराने जोईने अत्यंत प्रसन्नपणे सुखपूर्वक तेमां रही आरोगे छे. आ प्रमाणे दश-पंदर दिवस व्यतीत थाय छे तेवामां रत्नद्वीपना मनुष्यो बाण, खड्ग, भाला प्रमुख शस्त्रास्त्रोथी सज्ज थईने ते शिलाओ फरतां सात-आठ वखत वीटळाई वळे छे. बीजा केटलाक ते शिलाओमां रहेला जळचर मनुष्योने एकत्र करावे छे. जो जळचर मनुष्य पैकी एक पण वज्रशिलानी घंटीमांथी छटकी जाय तो ते रत्नद्वीपवासी समग्र प्राणियोनो संहार करी नाखे. बाद यंत्रद्वारा वज्रशिलामय घंटीना पड एकठा करीने ते जळचर मनुष्योने दळवा लागे. तेओना हाड एटला मजबूत होय छे के-आ प्रमाणे एक वर्ष पर्यंत सतत पीसावा छतां हाथ फाटी जाय नहीं के पीसाय पण नहीं. शरीरना बधा सांधाओ शिथिल थई जाय त्यारे घंटीनी पाछळ आंगळीनु हाडकुं जोईने रत्नद्वीपवासी मनुष्यो अत्यंत आनंद पामे. पछी दळवानो परिश्रम छोडी दई, घंटीनी शिलाओ अळगी करी ते जळचर मनुष्योना अंडगोलक लई ले. पछी ते अंडगोलक पुष्कळ द्रव्यवडे वेची नाखे. वज्रशिलानी मध्यमां एक वर्ष पर्यंत पीसाता ते जळमनुष्योने नारकीय भयंकर यातनानो अनुभव थाय छे.” आ प्रमाणे हृदय-विदारक वर्णन सांभळी गौतमस्वामी पुन: भगवंतने पूछे छे के–“हे भगवंत ! आ प्रमाणे एक वर्ष पर्यंत वज्रशिलानी घंटीमां पीसावा छतां आहार-पाणी विना ते जळचर मनुष्यो केम जीवी शके?" भगवंते जवाब आप्यो के–“हे गौतम ! करेला कर्मना स्वभावथी तेओने आवं कष्ट सहन करवू पडे छ, अर्थात् करेला को भोगववा माटे तेओ एक वर्ष पर्यंत जीवंत रहे छे.” आ संबंधी विशेष अधिकार प्रश्नव्याकरणनी टीकामांथी जोवो. वळी गौतमस्वामीए पछ्यं के “हे भगवंत ! सुमतिनो जीव जळचर मनुष्यमांथी मरीने क्या क्या उपज्यो?" भगवंते का के–“जळमनुष्यपणामां उपार्जेला कर्मोने कारणे तेना ज सात भवो कर्या बाद तेनो जीव १ शिकारी श्रनि थशे, पछी २ कागडानो भव करशे, पछी ३ वाणव्यंतर, ४ लींबडाना वृक्षमां, ५ मनुष्यनी स्त्री, ६ छट्ठी नारकीमां, ७ कोढियो मनुष्य, ८ यूथाधिपति हस्ती, ९ त्यां मैथुनमां आसक्त थईने अनंतकाय (साधारण वनस्पति), १० बाद अनंतकाळ परिभ्रमण करीने नैमित्तिक, ११ सातमी नरक, १२ श्रीगच्छाचार-पयन्ना- १५४
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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