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________________ सात नय छे. तेना दरेकना १००-१०० भेदो एटले सात सो भेटो थाय छे. बीजा मत प्रमाणे पांच सो भेद जणाव्या छे-नंगम, संग्रह, व्यवहार अने ऋतुसूत्र - आ चारना सो भेद तथा शब्द, समभिरुढ अ एवंभूत एत्रण एक होवाथी तेना सो गणतां पांचसो. वळी छ सो, चार सो अने बसो भेद पण दर्शावेला छे, ते आ प्रमाणे संग्रह अने व्यवहारने एक गणवाथी छ सो संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र अने शब्द ए चार एक होवाथी १०० अने बाकीना त्रणना त्रण सो कुल ४००. नैगम, संग्रह, व्यवहार ऋजुसूत्र ए चार द्रव्यास्तिक नयना १०० अने शब्द, समभिरुढ अने एवं भूत पर्यायास्तिक नयना १०० कुल २००. ज्यारे चरण, धर्म, संख्या अने द्रव्य- आ चारे अनुयोग संयुक्त हता त्यारे परस्पर विसंवाद दूर करवा माटे आ प्रमाणे गणत्री थई शकती; परंतु ज्यारथी श्री आर्यरक्षितसूरि (वृत्तांत माटे जुओ पृ. ८९) ए अनुयोग विभक्त कर्या त्यारथी श्रोता आश्रयथी नय-वर्णन करवुं. सर्व नयोनो समावेश बेमां थाय छे-व्यवहारनय ने निश्चयनय अथवा द्रव्यनय अने भावनय या ज्ञान अने चारित्र. आ सर्वनयोना प्रकारनो सार शुं ? ते जणावतां कहे छे के - “ सव्वेसि पि नयाणं, बहुविहवत्तव्वयं निसामेत्ता । तं सव्वनयविसुद्धं, जं चरणगुणद्विओ साहू ॥ १ ॥ " सर्व प्रकारना नयो घणा प्रकार छे ते सांभळीने अवधारीने जे चारित्रपात्र साधु होय तेने ज सर्व नयविशुद्ध जाणवो, अर्थात् चारित्रनय अने ज्ञाननयमां ज सर्वे नयोनो समावेश थई जाय छे. श्री आवश्यकनिर्युक्तिमा आसात नयने समजावतुं एक दृष्टांत आप्युं छे. ते आ प्रमाणे-देवदत्त नामनो कोई पुरुष कुहाड़ी लईने अटवी प्रत्ये चाल्यो तेवामां तेने कोई अन्य पुरुष मळ्यो. तेणे पुछ्धुं 'क्यां जाओ छो ?' देवदत्ते जवाव आप्यो-'पायला (एक जातनुं लाकडानुं माप) माटे जाउं छं.' आ जवाब ते अविशुद्ध नैगमनय जाणवो. बाद अटवीमां लाकडुं कापतां बीजो कोई पूछे छे -'शुं करो छो ? शुं छेदो छो ?' ते बोल्यो-'पायलो कापुं छं.' आ विशुद्धनैगम. बाद ते लाकडाने छोली रह्यो छे तेवामां कोईक त्रीजाए पूछयु - 'शुं छोलो छो ?' तेणे जवात्र आप्यो-'पायलो छोलुं छं.' आ विशुद्धतर नैगम. वळी कोईक बीजाए तेने पायलो खोदता जोईने पूछ्धुं -'शुं खोदो छो ? ' तेणे जवाब आप्यो-'पायलो खोदुं छं. ' आ विशुद्धतर नैगम, पछी तेने समारतां देखीने कोईके पूछ्धुं - 'शुं समारो छो ?' त्यारे जवाब आपतां कं के–'पायलो समारुं छं.' आ विशुद्धतर नैगम. आ प्रमाणे पायलो तैयार करीने ते बेठो छे तेवामाँ कोईके पूछ्यु–‘शुं लईने बेटा छो ?' तेणे कह्यं-'पायलो लईने बेठो छु.' आ प्रमाणे नामनिर्देशपूर्वक कहे ते विशुद्धतर नैगम छे. छेल्लो प्रकार विशुद्ध छे अने ते प्रथम नय कहेवाय आ प्रमाणे पायलाने पायलो जणाववो ते बीजो व्यवहार नय छे, एटले के ज्यांसुधी पायलो न थयो होय त्यांसुधी ने पायलो न माने परंतु पायलो थया पछी ज माने ते बीजो नय. ते पायलो धान्यथी भरेल होय अगर तो माप मापवाना काममां आव्यो होय त्यारे संग्रहनय. पहेला बे नयमां तो पायलो थयो एटले पायलो कह्यो परंतु संग्रहनय तो ज्यारे ते पायलानुं कार्य करतो थयो एटले के धान्यादिकनुं मान कर्यं त्यारे पायलो कहे छे. ऋजुसूत्र तो जे पायलो छे तेने अने तेना द्वारा अपाता धान्यादिकने पण पायलो माने छे. छेल्ला ऋण शब्द, समभिरूढ अने एवंभूत - ए त्रण नय तो पायलानो अधिकार श्रीगच्छाचार- पयन्ना — १४४ -
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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