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________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रमां कह्यं छे के – “ इत्तरियमरणकाला य, अणसणा दुविहे भवे । इत्तरिया सावकंखा, निरवकंखा वितिज्जिया || १ || ” अर्थात बे प्रकारना अणशण कहेल छे-१ इत्वर अने २ यावत्कथिक. इत्वर ते सावकांक्ष छे अने बीजुं निरवकांक्ष छे इत्वर अणशण नवकारशीथी प्रारंभीने (श्रीऋषभदेवस्वामीना समयमां) एक वर्ष पर्यंतना उपवासवडे थाय छे. यावत्कथिक एटले जिंदगी पर्यंतनुं अणशण. ते त्रण प्रकारनुं दर्शाव्युं छे. (१) पादपोपगमन, (२) इंगितमरण अने (३) भक्तपरिज्ञा. (१) पादपोपगमन चारे प्रकारना आहारना त्याग करवापूर्वक, हाथ-पग इत्यादिक हलाववानी चेष्टा रहित, आंखनुं मटकुं पण मार्या वगर अने शरीरना प्रतीकार सिवाय एटले के कोई पासे शरीर मसळाववुं इत्यादिक वेयावच्चनी क्रिया रहित, जेवी रीते वृक्षनी शाखा भूमि पर पडी होय तेनी माफक चेष्टा रहित पड्या रहेवुं ते पादपोपगमन अणशण कहेवाय. तेना बे भेद छे - (१) सव्याघात अने (२) निर्व्याघात, सिंह, व्याघ्र सर्प इत्यादिक हिंसक प्राणिओनो उपद्रव थये छते पादपोपगमन अणशण ग्रहण करवुं ते सव्याघात जाणवुं. सूत्र अने अर्थना ज्ञाता, जेणे घणा शिष्योने संलेखना करावी होय तेवा मुनिराज पोते संलेखनापूर्वक चारे आहारनो त्याग करीने जे पादपोपगमन अणशण स्वीकारे ते निर्व्याघात समजवु. आ संबंधमां ए हकीकत ध्यानमा राखवी संलेखना विना आ अणशण न करवुं. कदाच करे तो आर्त्तध्यान थवानो भय रहे. (२) इंगितमरण - भूमिप्रदेशनुं प्रमाण बांधीने जे अणशण करवुं ते. 'आटली भूमिमां मारे रहेवुं,' ए प्रमाणे निरधार करीने संहनननी अपेक्षाए रहेवु. पादपोपगमन अणशण करवाने जे अशक्त होय ते आणण स्वीकारे छे, कारण के प्रथम पादपोपगमन अणशणमां शरीरप्रतिक्रिया न करी शकाय, ज्यारे आ बीजा अणशणमां तो जो पोताना शरीरे कंईपण बाधा - उपद्रव थाय तो स्वहस्ते तेलमर्दनादि थाय, परंतु बीजा पासे तेवी क्रिया न करावाय. आ अणशणमां पण चारे आहारनो त्याग करवामां आवे छे. (३) भक्तपरिज्ञा - इंगितमरण स्वीकारवाने असमर्थ अने श्रेष्ठ संहननहीन तिविहार अथवा चोविहारवडे आ अणशण करे. आ अणशण करनार सप्रतिकर्मा होय छे एटले शरीरने विषे व्यथा थती होय तो बीजा पासे वेयावच्च करावे, तेलमर्दनादि करावे. आने भक्तपरिज्ञा कहो के भक्तपच्चक्खाण कहो-बनेनो अर्थ एक ज छे. आ त्रणे प्रकारना अणशणो निहारिम अने अनिहारिम एम बे प्रकारना होय छे. काळधर्म पाम्या पछी जे देहने उपाडीने जंगलमां वोसराववुं पडे ते निहारिम अने जे शरीरने न वोसराववुं पडे ते अनिहारिम जाणवुं. जे अणशण करवाने अशक्त होय तेने माटे २. ऊणोदरिका कहे छे. ऊणोदरिका ऋण प्रकारनी छे. श्रीस्थानांगसूत्रमां कह्यं छे के - "तिविहा ओमोयरिया पं. तं. उवगरणोमोयरिया १, भत्तपाणगोमोयरिया २, भावोमोयरिया ३ ।' अर्थात् त्रण प्रकारनी ऊणोदरिका कहेली छे. (१) उपकरण-ऊणोदरिका, (२) भत्तपाण (आहार) ऊणोदरिका अने (३) भाव-ऊणोदरिका टीकाकार आ संबंधमां जणावे छे के (१) पहेली उपकरणऊणोदरिका जिनकल्पी साधुओने ज होय, कारण के ९/१२ अगर तो मात्र बे ज उपकरण राखे तो तेमने चाले परंतु स्थविरकल्पीने आ ऊणोदरिका न होय. जो स्थविरकल्पी शास्त्रोक्त उपधि न राखे तो तेनाथी चारित्रपालन कठिन बने, एटले तेमने चौद उपकरणो राखवा पडे, परन्तु तेथी विशेष श्रीगच्छाचार-- पयन्ना
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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