SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आर्यरक्षित प्रभावक आचार्य थशे एटले तेने शांत वाणी द्वारा जणाव्यु के–“आर्यरक्षित ! तारो उत्साह प्रशंसापात्र छे. तारी तेजस्विता पण आ अभ्यासनी लायकात पुरवार करे छे, परंतु अमारी । शास्त्राज्ञा प्रमाणे जे जैनी दीक्षा स्वीकारे तेने ज दृष्टिवादनो अभ्यास करावी शकाय." ___ आर्यरक्षितने तो कोई पण प्रकारे विद्याभ्यासनी लगनी लागी हती अने तेनी पछवाडे पूज्य मातानी प्रेरणा हती एटले विशेष विचार कर्या वगर तेणे गुरुने पोतानी दीक्षा लेवानी संमति दर्शावी. आचार्यश्रीए विचार्यु के–“आर्यरक्षित हमणा ज पाटलीपुत्रथी सुपंडित पदवी लई आवेल छे,प्रजानो पण तेना परत्वे पूरेपूरो चाह छे. पुरोहितपुत्र छे अने तेने कारणे राजवीने पण बहुमान्य छे. एटले जो तेने दीक्षा आपीने अहीं ने अहीं राखीश तो तेना प्रत्ये प्रेम धरावनारा विघ्नकारक थशे.” आ प्रमाणे विचारी तेणे आर्यरक्षितने ते वात जणावी का के–“दीक्षा लईने आपणे अहींथी गुपचुप अन्यत्र विहार करवो पडशे.” आर्यरक्षिते ते पण स्वीकार्यु अने योग्य मुहूर्तमां आर्यरक्षित संसारी मटी मोक्षमार्गना मुसाफर बन्या. जैनशासनमां आ प्रमाणे आ पहेल-वहेली ज शिष्यनिष्फेटिका बनी.. जाणे पूर्व तैयारी ज होय तेम आर्यरक्षिते अल्प समयमांज पूर्वोनो अभ्यास अवधारी लीधो. विशेष विद्याभ्यास माटे तोसलीपुत्रे तेमने श्रीवज्रस्वामी पासे मोकलवानो विचार को अने आज्ञा पण आपी. आबाज श्रीवज्रस्वामीने स्वप्न आव्य के-पायसथी भरेलपात्रद्वारा में कोई पण अतिथिने पारणु कराव्यु परंतु पात्रमा शेष अल्प ज पायस बाकी रह्य. आर्यरक्षित तेमनी सेवागां हाजर थया अने अभ्यास कराववा माटे प्रार्थना करी. श्रीवज्रस्वामीए तैमने अध्ययन करावतां तेओ नवपूर्वना ज्ञानी बन्या. ___ आ बाजु आर्यरक्षितना चाल्या जवा बाद नगरमां स्हेज खळभळाट मच्यो परंतु आर्यरक्षितनी संमतिथी ज आ बनाव बनेल होवाथी तेनो विशेष ऊहापोह न थयो. रुद्रसोमाए पुत्रवात्सल्यथी दृष्टिवादनो अभ्यास करवा कही नाख्युं परंतु लांबा समयना विरहथी तेनुं वात्सल्य आर्यरक्षितनी जंखना करी रह्यं हतुं. रुद्रसोमाने आर्यरक्षितने मळवानी उत्कंठा थई एटले फल्गुरक्षितने तेमने तेडवा माटे मोकल्यो. ___ फल्गुरक्षिते आवी आर्यरक्षितने मातृस्नेहनु स्मरण कराव्यु. आर्यरक्षिते जणाव्यु “आ क्षणभंगुर संसारमा स्नेह ने मोह केवा? हाथिए बहार काढेला दांत शुं पाछा अंदर जाय छे? आ संसार ज आवी विचित्र बीनाओथी भरपूर छे. मोहराजा आ जीवने विविध रूपे नचावे छे अने आपणे नटनी माफक आ संसार-रंगभूमि ऊपर नाचीए छीए.” बाद फल्गुरक्षितने पण प्रतिबोधी प्रव्रज्या ग्रहण करावी. नव पूर्वनो अभ्यास तो सरळताथी कर्या बाद आर्यरक्षिते दशमा पूर्वनी शरूआत करी, परंतु अत्यार सुधी न जणायेल तेवो श्रम हवे तेमने जणावा लाग्यो. कठिन भांगाओ, दुर्गम गमक, दुष्कर पर्याय अने समान शब्दोना अर्थ शीखतां तेमनी बुद्धि हवे थाकवा लागी, छतां पण दृढ मनोबलथी अध्ययन शरू राख्यं परन्तु कंटाळो प्रतिदिन वधवा लाग्यो. एकदा तेमणे श्रीवज्रस्वामीने एकांतमां पूछ्युं के–“हे भगवन् ! हजु मारे केटलुं अध्ययन करवू शेष रह्यं छे?” वज्रस्वामीए तेमनो हृदयगतभाव जाणी लई एटलुंज का के–“तेनो विचार न करो, अभ्यास शरू राखो. मनने चंचळ श्रीगच्छाचार-पयन्ना- ९०
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy