SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधुना आचार-विचार बराबर पाली शके तेम जणातुं होय तो अपवादरूपे तेवा वृद्धने पण दीक्षा आपी शकाय. आ संबंधमां विशेष वर्णन पंचकल्पभाष्यमां जणावेल छे. ३. नपुंसक - जे पुरुषमां पण न होय अने स्त्रीमां पण न होय तेने नपुंसक जाणवो. ते बीजा साधुओने दुराचारी बनावे, संयमनी विराधना करे, लोकोमा हांसी करावे माटे तेवा नपुंसकने दीक्षा न आपवी. कदाच अजाणतां अपाई गई होय तो तेने काढी मूकवो. कदाच ते स्वयं न चाल्यो जाय तो तेने भोळवीने-समजावीने पण काढवो. कदाच ते नपुंसक राजा पासे पोताने काढी मूक्या संबंधी फरियाद करे अने राजा तेनो पक्ष लई तेने गच्छमा राखवा आग्रह करे त्यारे सुज्ञ आचार्ये अगर तो मुनिराजे राजाने समजाववा माटे कहेवू के–“आपना कोशागारमां कोई दुष्ट माणस होय तो आप तेने माटे केवां पगलां भरो? राजा जवाब आपे के तेने तरत ज काढी मुकुं. राजानो आवो जवाब सांभळी सुज्ञ साधु कहे के आ नपुंसक अमारा ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूपी भंडारने लूटनार-दोषित करनार छ माटे तेने अमारे बहिष्कृत करवो ज जोईए.” आ प्रमाणे छेवटे राजाने पण समजावे. कदाच वैयावच्चादिक कोई कारण प्रसंगने अंगे नपुंसकने दीक्षा देवी पडे तो कार्य सधाय त्यां सुधी राखे, पण तेने क्रिया-कलाप कई पण न शीखवे. पछी काढी मूके. न चाल्यो जाय तो योगीनो वेष पहेरावी अन्यत्र मूकी आवे. आ संबंधी विशेष विवरण आवश्यक चूर्णीमां तथा वृत्तिमां 'पारिद्वावणियाना अधिकारमा आपवामां आवेल छे. ४. क्लीब- स्त्रीना निमंत्रणथी, स्त्रीना अंगोपांगादिना दर्शनथी, स्त्रीओ साथेना मिष्ट वार्तालापथी जेने काम उत्पन्न थाय, स्त्री साथे भोग भोगववा तीव्र अभिलाषा उद्भवे, कामना वेगने रोकी शके नहीं-विह्वल बनी जाय परन्तु कामभोगने भोगवी शके नहीं ते क्लीब जाणवो. ते स्त्रीओनी पाछळ अंध थईने फर्या करे, शासननी हेलना करावे, लोकोमा निदानु पात्र बने माटे तेवा क्लीबने दीक्षा न आपवी. कदाच अपवाद तरीके दीक्षा आपी होय तो पण काढी मूकवो. ५.जड-त्रण प्रकारना जड छे–१ भाषाजड, २ शरीरजड अने ३ करणजड. (१) जे भाषा बराबर न बोली शके ते भाषाजड कहेवाय. तेना पण त्रण भेद छे-(अ) जलमूक (आ) मन्मनमूक अने (इ) एलकमूक जळमां कोई डूबवा मांडे त्यारे जेवो वलवल' ध्वनि थाय तेनी माफक बोले ते जलमूक. जे बोलता थकां वच्चे हबकी खाईने - खंचकाई बोले तेने मन्मनमूक जाणवो. तेम ज जे बकराओनी माफक अव्यक्त बोले, तेनुं वचन न समजाय, फक्त शब्द मात्र करे तेने एलकमूक जाणवो. आवा जडने दीक्षा न आपवी. कदाच वैयावच्चादिने कारणे दीक्षित कर्या होय तो पण तेने काढी मूकवो. आ संबंधी विशेष स्वरूप पंचकल्पभाष्यमां अने आवश्यक सूत्रनी वृत्तिमां आपवामां आवेल छे. (२) शरीरजड-शरीरे विशेष स्थूल होय, हृष्टपुष्ट होय, तथा वांकाचूंका अवयववाळो होय तो ते विहारमां जल्दी चाली शके नहीं, गोचरी लाववामां पण उपयोगी न नीवडे तेम ज आवश्यक क्रिया करतां वांदणां देवाना समये ऊठ-बेठ न करी शके माटे तेवा शरीरजडने दीक्षा न आपवी. पोते एकला होय अने सहयोगी तरीके बीजा साधुनी जरूर ज होय तेवे समये तेने दीक्षा आपे परन्तु कार्य पूर्ण थये तेने काढी मूकवो. (३) करणजङ-साधुना आचारने अंगे जे जे क्रिया बतावीए ते श्रीगच्छाचार–पयन्ना-८५
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy