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________________ प्रकाशकीय जयवंता जिनशासनमा श्वेतांबर संप्रदाय श्री सुधर्मास्वामीनी श्रुतपरंपरा ४५ आगमोने माने छे. एमां ११ अंग पैकी छट्ठ अंग छे 'नाया धम्मकहाओ' (ज्ञाताधर्मकथा) जेनुं आ अवसरे पुनः मुद्रण थइ रह्यु छे । परमवीर प्रभु महावीरना श्रीमुखेथी त्रिपदी ग्रहण करी मात्र अंतर्मूहूर्तमां ज १४ पूर्वनी रचना करनार परमपवित्र श्री सुधर्मास्वामीजीनी शब्दना माध्यमे आपणने अहीं प्रतिति थाय छे. आ परमागम ग्रंथमां बे श्रुतस्कंध छे. प्रथम श्रुतस्कंधमां १९. अध्ययनोमां धर्मकथाना माध्यमे उपदेशनी सरवाणी वहे छे. बीजा श्रुतस्कंधमां पण धर्मकथाओ छे. अहीं आखो ग्रंथ मूळ छे. इ.स. १९४० मां पूनानी फर्ग्युसन कोलेजना अध्यापक श्री एन.वी. वैद्य द्वारा तेनुं संपादन 'थयुं छे. आ पुनः प्रकाशन संमये पूर्व संपादकने कृतज्ञताभावे याद करीए छीए । श्री जिनशासन श्रुतधारक एवा गीतार्थ आचार्य भगवंतो द्वारा ज वहन कराय छे... "अन्नाणसंमोहतमोहरस्स, नमो नमो नाणदिवायरस्स" आदि पदो द्वारा ज्ञाननो अपूर्व महिमा गवायो छे. आ श्रुतपरंपराने अविच्छिन्न रीते आगळ वधारवी ए आपणा सौर्नु कर्तव्य छे. श्री जिनशासन आराधना ट्रस्ट द्वारा छेल्ला २४ वर्षथी श्रुतसेवा द्वारा जिनशासननी अपूर्व भक्ति थइ रही छे. आज सुधीमा २५० जेटला प्राचीन श्रुतग्रंथोना पुनःमुद्रणादि कार्यो थया छे. हजी पण आ श्रुतसेवा अपूर्ववेगे चाली रही छे. श्रुताधिष्ठायिका श्री सरस्वती देवी अमने आ कार्यमां पूर्णकृपा वरसावे एज अभ्यर्थना सह लि..... श्री जिनशासन आराधना ट्रस्ट वती श्री चंद्रकुमार बाबुभाई जरीवाला ललितकुमार रतनचंद कोठारी श्री पुंडरिकभाई अंबालाल शाह
SR No.022584
Book TitleNayadhammakahao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinshasan Aradhana Trust
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2002
Total Pages260
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size20 MB
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