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पद्यमय भावानुवाद
श्री आचारांगसूत्रम्
क्रय-विक्रय से रहित हो, करे नहीं करवाय । अनुमोदन भी नहिं करे, वही निष्ठ मुनिराय । । १ । । तीन करणत्रय योग से, क्रय-विक्रय से दूर । बलज्ञ अरु कालज्ञ वह, वही साधु है शूर । । २ । । जानें जो आचार मुनि, जाने मुनि - व्यवहार । राग-द्वेष से रहित जो, वही निष्ठ आचार । । ३ । ।
ममता से मोहित नहीं, मुनिवर रहित निदान । युक्त कालानुसार ही, शुद्ध क्रिया अनगार । । ४ । । • त्रिविध मार्ग •
मूलसूत्रम् -
दुहओ छेत्ता णियाइ, वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं उग्गहं च कडासणं एएसु चेव जाणिज्जा । । ८९ ।।
पद्यमय भावानुवाद
राग-द्वेष छेदन करे, करे प्रतिज्ञा कोय | वर्जित करना श्रमणवर, आराधक तब होय । । १ । । ज्ञान दर्शन चारित्र हित, सत् क्रिया अनुष्ठान । यही शपथ कल्याणमय, फरमाते भगवान । । २ । ।
वसन पात्र कम्बल तथा ओघा अवग्रह पाय ।
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कटासन उपयोग शुद्ध, ग्रहण करे मुनिराय । । ३ । ।
आहार विवेक
मूलसूत्रम् -
लद्धे आहारे अणगारो मायं जाणिज्जा। से जहेयं भगवया पवेइयं । लाभुत्तिण मज्जिज्जा, अलाभुत्ति ण सोइज्जा, बहुं पि लगुण णिहे, परिग्गहाओ अप्पाणं अवसक्किज्जा ।