SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * ४२* जब तक इन्द्रिय क्षीण नहिं, तब तक बाजी हाथ । प्रवृत्ति हो सद्धर्म में, बस इतनी सी • पण्डित हितोपदेश • मूलसूत्रम् - पद्यमय भावानुवाद श्री आचारांगसूत्रम् खणं जाणाहि पंडिए । बात । । ३ । । रे! पण्डित क्षणमात्र भी, होइ न तुझे प्रमाद | उत्तम अवसर प्राप्त यह, बस इतना रख याद ।। १ ।। पद्यमय भावानुवाद भव्य मनुज का लक्ष्य यह, कहते आगमकार । जब तक है नीरोग तन, कर ले आत्मोद्धार । । २ । । • धर्माचरण पुरुषार्थ बोध • मूलसूत्रम् - जाव सोय - परिण्णाणा अपरिहीणा, णेत्तपरिण्णाणा अपरिहीणा, घाणपरिण्णाणा अपरिहीणा, जीह परिण्णाणा अपरिहीणा, फरिसपरिण्णाणा अपरिहीणा, इच्चेएहिं विरूवरूवेहिं पण्णाणेहिं अपरिहीणेहिं आयट्टं सम्मं समणु वासिज्जासि । । त्ति बेमि ।। जब तक पाँचों इन्द्रियाँ, नहिं हो पातीं क्षीण । तब तक धर्माराधना, कर ले तू तल्लीन । । १ । । नहीं भरोसा देह का, कब हो जाए नष्ट । अतः करो धर्माचरण, ज्ञानी भाव स्पष्ट । । २ । । अवसर जब चुक जायेगा, होगा पश्चात्ताप । सूरि 'सुशील' शिक्षा सुखद, चिन्तन कर लो आप । । ३ । ।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy