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________________ प्रथम अध्ययन : शस्त्रपरिज्ञा • क्रिया और कर्मबोध • मूलसूत्रम् - अणेगरूवाओ जोणीओ संधेइ, विरूवरूवे फासे पडिसंवेदे । पद्यमय भावानुवाद मूलसूत्रम् - क्रिया तथैव कर्म का, अगर स्वरूप न ज्ञात । / बहु प्रकार की योनियों, जन्म-मरण वह पात । । १ । । बहुविध स्पर्श अनुभूति, करता जीव अनेक । अथवा सुख-दुख भोगता, पाठक करो विवेक ।। २ ।। • परिज्ञा-बोध • तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया । पद्यमय भावानुवाद अरे दुक्ख से मुक्ति हित, निश्चय जिन फरमान । परिज्ञा द्वय प्रकार की, विवेक मति पहचान ।। पाप निमित्त-बोध • * २९ * मूलसूत्रम् - इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण - माणण- पूयणाए जाई - मरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेउं । पद्यमय भावानुवाद कहें परिज्ञा बोध को, अथवा कहें विवेक । हिंसा के कारण कहें, जिनवर वीर अनेक । । १ । । जीवन जीने के लिए, पाप क्रिया अनुरक्त । नानविध हिंसा करें, अविवेकी नर त्रस्त । । २ । । अपने यश-सम्मान हित, जन्म हर्ष भी साथ । . मरण मुक्ति दुख टालने, रँगें रक्त में हाथ । । ३ । ।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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