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________________ * २८* श्री आचारांगसूत्रम् पतन. • चतुर्थवाद. मूलसूत्रम् से आयावादी लोयावादी कम्मावादी किरियावादी। पद्यमय भावानुवाद भव-भव भटके आतमा, रखता जो संज्ञान। आत्मवादी है वही, लो तुम आगे जान ।।१।। जन्म-मरण हो लोक में, कारण कर्म-विधान। लोक-कर्म-वादी वही, क्रिया करे वह जान।।२।। राग शुभाशुभ कर्म की, क्रिया बाँधती कर्म। चारों वादी एक ही, कहते स्वामि सुधर्म ।।३।। . .योग चिन्तन. मूलसूत्रम्अकरिस्सं चऽहं, कारवेसु चऽहं, करओ यावि समणुण्णे भविस्सामि। पद्यमय भावानुवाद 'किया' 'करूँ' 'करूँगा' मैं, तीन काल का बोध। अनुमोदन भी मैं करूँ, समझे जो कर शोध ।।१।। क्रिया रूप जो समझता, कर सकता वह त्याग। इसको ही जम्बू कहें, आत्मधर्म की जाग।।२।। • कर्म समारम्भ. मूलसूत्रम्एयावंति सव्वावंति लोगंसि कम्मसमारंभा परिजाणियव्वा भवंति।।३।। पद्यमय भावानुवाद समारम्भ का हेतु है, यही क्रिया सुन तात। हिंसा का कारण यही, करें जीव की घात।।१।। क्रिया रूप को समझकर, करना खूब विचार। ज्ञान-विरति से त्यागना, जीवन का आधार ।।२।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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