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________________ भूमिका * २३ * -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-. घन गरजें बिन काल ही, चपला कड़क अकाल। दोय प्रहर वर्जित कथन, भव्य करो यह ख्याल ।।२५६ ।। तिथियाँ पड़वा-दौज की, और तीज की रात। शुक्ल पक्ष सज्झाय तज, एक प्रहर तक भ्रात।।२५७।। धुंअर श्वेत नभ में दिखे, अथवा काला रंग। जब तक हो तब तक सुनो, स्वाध्याय कर भंग।।२५८।। यक्ष चिह्न आकाश में, पाठक को दिखलाय। रज आच्छादित हो रही, तब तक तज स्वाध्याय।।२५९ ।। औदारिक सम्बन्धी स्वाध्याय निषेध रक्त-मांस दिखने लगे, साठ हाथ की माप। भीतर हो स्वाध्याय तज, फरमाते जिन आप।।२६० ।। मानव हड्डी रक्त हो, शत कर त्याग निर्देश। जली धुली नहिं हो अगर, द्वादश वर्ष निषेध।।२६१ ।। अशुचि दिखाई दे अगर, या आये दुर्गन्ध। तब तक नहिं स्वाध्याय कर, फरमाते जिनचन्द।।२६२।। मरघट हो यदि निकट में, शत कर लो तुम दूर। स्वाध्याय नहिं कीजिए, रखना ध्यान जरूर ।।२६३ ।। चन्द्रग्रहण द्वादश प्रहर, अरु सोलह भास्वान। असंज्झाय आगम वचन, समझ-समझ धीमान।।२६४।। अन्य स्वाध्याय निषेध बोध चर्चित मानव भूमिपति, जो जाये परलोक। जब तक घोषित अन्य ना, स्वाध्याय पर रोक।।२६५ ।। राज-विग्रह जब तक रहे, तब तक सूत्र न बाँच। मुनि 'सुशील' श्रद्धा करे, जिनवाणी पर साँच।।२६६ ।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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