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________________ नवाँ अध्ययन : उपधान श्रुत * १४९ * मूलसूत्रम्-. णच्चाणं से महावीरे णो वि य पावगं सयमकासी। अण्णेहिं वि ण कारियत्था कीरंतं पिणाणुजाणित्था।। पद्यमय भावानुवाद करूँ-कराऊँ पाप नहिं, अनुमोदन भी त्याग। तीन तरह से अघ विरत, ऐसे थे बड़भाग।। मूलसूत्रम् गामं पविस्स णगरं वा घासमेसे कडं परट्ठाए। सुविसुद्धमेसिया भगवं आयतजोगयाए सेवित्था।। पद्यमय भावानुवाद करें एषणा अशन की, ग्राम-नगर के माहिं। बनी रसोई गृहस्थ हित, उसी अन्न को खाहिं।।९।। शुद्ध-विशुद्ध आहर ही, लेते थे प्रभु वीर। संयम विधि भोजन करें, सत्तू हो या खीर।।१०।। मूलसूत्रम् अदु वायसा दिगिंछत्ता जे अण्णे रसेसिणो सत्ता। घासेसणाए चिट्ठते सययं णिवतिते य पेहाए।। अदु माहणं व समणं वा गामपिंडोलगं च अतिहिं बा। सोवागं मूसियारं वा कुक्कुरं वा वि विहं ठियं पुरतो।। वित्तिच्छेदं वज्जतो तेसऽप्पत्तियं परिहरंतो। मंदं परक्कमे भगवं अहिंसमाणो घासमेसित्था।। पद्यमय भावानुवाद . (छन्द गीतिका) मिलें मार्ग में पशु-पक्षी तब, जब भिक्षा को जाते। बैठे मिलते काग या कि फिर, प्यासे जीव लखाते।।१।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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