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________________ * १३८ * मूलसूत्रम् - एएहिं मुणी सयणेहिं समणे आसि पतेरसवासे । राइ दिवं पि जयमाणे अप्पमत्ते समाहिए झाइ । । पद्यमय भावानुवाद महाश्रमण इन वास गृह, बीता साधन काल । संयत- स्थिर रात-दिन, अविचल मन की चाल । । १ । । साढ़े बारह वर्ष अरु संग दिवस दस - पाँच। , डूबे रहते ध्यान में, सुन जम्बू यह साँच । । २ । । • अति निद्रा निषेध • मूलसूत्रम् श्री आचारांगसूत्रम् णिद्दं पि णो पगामाए, सेवइ भगवं उट्ठाए । जग्गावइ य अप्पाणं, ईसिं य अपडिण्णे ।। पद्यमय भावानुवाद , महावीर भगवन्त ने निद्रा लीन्ही अल्प । रात-दिवस जागृत रहे, नहिं सोना ही कल्प । । १ । । कभी सताये नींद तो, खड़े हुए तत्काल । रहे अहर्निश ध्यान में, जिसकी नहीं मिसाल । । २ । । • निद्रा विजय • मूलसूत्रम् - संबुज्झमाणे पुणरवि आसिंसु भगवं उट्ठाए । णिक्खम्म एगया राओ बहिं चंकमिया मुहुत्तागं । । पद्यमय भावानुवाद सतत ध्यान के कारणे, निद्रा लीन्हीं जीत । निद्रा - विजयी वीर प्रभु, वर्षा हो या शीत । । १ । । क्षणभर को ही नींद ले, जगकर करते ध्यान । पल दो पल को घूमकर, आ बैठें भगवान । । २ । ।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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