SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आठवाँ अध्ययन : विमोक्ष * १२९ * •बन्धन रवण्डन. मूलसूत्रम् गंथेहिं विवित्तेहिं। पद्यमय भावानुवाद निश्चित ही जो मुक्त है, बन्धन दोउ प्रकार। मुनि 'सुशील' संसार से, हो जायेगा पार।। .आर्य-कार्य. मूलसूत्रम् पग्गहियतरंगं चेयं, दवियस्स वियाणओ। पद्यमय भावानुवाद महाव्रती गीतार्थ मुनि, करते उत्तम काम। इंगितमरण सुग्रहण कर, पाते अविचल धाम।। •विषय-ग्लानि. मूलसूत्रम् इंदिएहिं गिलायंते, समियं आहरे मुणी। पद्यमय भावानुवाद होती ग्लानि श्रमण को, इन्द्रिय विषय विलास। साम्यभाव मन में धरे, करता आत्म-विकास।। • यत्नाधर्म. मूलसूत्रम् संकुचए पसारए। पद्यमय भावानुवाद परमार्जन पहले करो, रजोहरण कर धार। लेना अंग सिकोड तू, अथवा अंग पसार।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy