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________________ * १२६ * इंगितमरण शरीर का करते मुनिवर त्याग । मुनि 'सुशील' वे मुक्तिपद, पा लेते सौभाग । । ५ । । मूलसूत्रम् - आठवाँ उद्देशक समत्व बोध मूलसूत्रम् - जीवियं णाभिकंखेज्जा, मरणं णो वि पत्थए । दुहवो ओडविण सज्जिज्जा, जीविए मरणे तहा ।। पद्यमय भावानुवाद जीवन की इच्छा नहीं, नहीं मृत्यु का भाव । दोनों में आसक्ति बिन, रखते मुनि समभाव ।। • पाप निरोध श्री आचारांगसूत्रम् जओ वज्जं समुप्पज्जे, ण तत्थ अवलंबए । तओ उक्कसे अप्पाणं, फासे तत्थ हियासए । । पद्यमय भावानुवाद मूलसूत्रम् - वर्ण्य क्रिया या कार्य में, अगर पाप हो जाय । वह धन्धा मत कीजिए, जैनागम फरमाय ।। अरे ! अरे ! जिस कार्य से, हो अघ वज्र समान । कभी नहीं वह कीजिए, तुम साधक गुणवान ।। धर्म प्रभावक बुद्धा धम्मस्स पारगा ।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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