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________________ * १२० * पद्यमय भावानुवाद मूलसूत्रम् - - सर्वसम्मत हिंसा जहाँ, अन्य धर्म अनुसार । मौन साध रत धर्म में, ये ही मुनि आचार ।। • धर्म वृद्धि व गामेणेव रण्णे धम्ममायाणह । पद्यमय भावानुवाद नहीं धर्म है विपिन में, नहीं धर्म है ग्राम । धर्म प्रकट है आत्म में, श्री जिन वचन ललाम ।। दूसरा उद्देशक • अकल्पनीय परित्याग श्री आचारांगसूत्रम् मूलसूत्रम् - सेभिक्खू परिक्कमिज्ज वा जाव हुरत्था वा कहिंचि विहरमाणां तं भिक्खुं उवसंकमित्तु गाहावई आयगयाए पेहाए असणं वा 4 वत्थं वा 4 जाव आहट्टु चेएइ आवसहं वा समुस्सिणाई भिक्खू परिघासेडं, तं च भिक्खू जाणिज्जा सहसम्मइयाए परवागरणेणं अन्नेसिं वा सुच्चा - अयं खलु गाहावई मम अट्ठाए असणं वा 4 वत्थं वा 4 जाव आवसहं वा समुस्सिणाइ, तं च भिक्खू पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अणासेवणा त्ति बेमि । पद्यमय भावानुवाद -- चाहे मरघट में रहो, चाहे विपिन विहार । चाहे पुर अरु ग्राम में, समतामय अणगार । । १ । । भक्तिभाव के वश हुआ, आये मुनि के पास । भोजन चार प्रकार का, अरज बनाया खास ।। २ ।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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