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________________ छठा अध्ययन : धुत *११७* इसी तरह गुरु शिष्य का, रखते हरदम ध्यान। जब तक निपुण न धर्म में, तब तक निश्रा दान।।९।। सुनो तात आचार्य का, जो-जो हित फरमान। कर सम्यक् आराधना, पाये मोक्ष महान् ।।१०।। चौथा उद्देशक • निन्दा निषेध. मूलसूत्रम्सीलमंता उवसंता संखाए रीयमाणा असीला अणुवयमाणस्स बिइया मंदस्स बालया। पद्यमय भावानुवाद शीलवन्त उपशांत मुनि, सम्यक् संयमवान । उनको कहे अशील जो, महामूढ़ इन्सान।।१।। उत्तम मुनिवर संत को, मूरख बुरा बताय। कही दूसरी मूर्खता, करता वह अन्याय।।२।। • सम्यक्त्ववान. मूलसूत्रम्णियट्टमाणा वेगे आयार-गोयरमाइक्खंति, णाणब्भट्ठा दंसणलूसिणो। पद्यमय भावानुवाद अशुभ कर्म के उदय से, करता संयम नाश। किन्तु प्ररूपणा शुद्ध हो, जिन आगम विश्वास ।।१।। श्रावक अथवा श्रमण का, प्राप्त बराबर ज्ञान। होय भ्रष्ट संसार से, फिर भी समकितवान।।२।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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