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________________ छठा अध्ययन : धुत * १११ * .कर्म धुनन बोध. मूलसूत्रम्आयाण भो ! सुस्सूस भो ! धूयवायं पवेय इस्सामि इह खलु अत्तत्ताए तेहिं तेहिं कुलेहिं अभिसेएण अभिसंभूया अभिसंजाया अभिणिव्वट्टा अभिसंवुड्डा अभिसंबुद्धा अभिणिखंता अणुपुव्वेण महामुणी। पद्यमय भावानुवाद सद्गुरु अपने शिष्य को, फरमाते उपदेश। अरे कर्म को झटकना, धूत अर्थ सविशेष।।१।। अपने-अपने कर्म से, नाना कुल अवतार। शुक्र रक्त संयोग से, रहे गर्भ आधार ।।२।। कललऽरु पेशी रूप में, निर्मित अंग शरीर। बाद जन्म धारण करे, बाल युवा वय वीर।।३।। धर्मकथा के श्रवण से, चढ़ते भाव विरक्त। जब दीक्षा धारण करे, पाते पद अव्यक्त ।।४।। • मोह दशा. मूलसूत्रम्तं परक्कमंतं परिदेवमाणा, मा णे चयाइ इह ते वयंति छंदोवणीया अज्झोववण्णा अक्कंदकारी जणना रूयंति, अतारिसे मुणी णय ओहंतरए जणगा जेण विप्पजढा, सरणं तत्थ णो समेइ, कहं णु णाम से तत्थ रमइ ? एयं णाणं सया समुणवासिज्जासि त्ति बेमि। पद्यमय भावानुवाद संयम हित उद्यत हुए, त्याग सर्व संसार। तब उससे कहते अरे, तात-मात अरु दार।।१।। आक्रन्दन करते गजब, बरसे आँसू धार। अरे न हमको छोड़ना, तू परिजन-आधार ।।२।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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