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________________ पाँचवाँ अध्ययन : लोकसार *१०५* -. -. -. -. -. -. -. -. -. - . -. -. -. -. - . अरे शिष्य ! गुरुराज पद, करना निकट निवास। रे आत्मोन्नति के लिए, होते सफल प्रयास।।६।। . • सिद्धान्त परीक्षा. मूलसूत्रम्अभिभूय अदक्खू अणभिभूए पभू णिरालंबणयाए जे महं अबहिंमणे, पवाएणं पवायं जाणिज्जा, सह सम्मइया ए परवागरणेणं अण्णसिं वा अंतिए सुच्चा। - पद्यमय भावानुवाद नहिं हारे उपसर्ग से, साधक वही महान् । जिन आज्ञा में रमण मन, पाये तत्त्व प्रधान।।१।। निरालम्ब मुनिवर मनन, समर्थ कब परिवार। रोक न सकते नरक से, कर ले यत्न हजार।।२।। केवल जिनवर कथन युत, जीवन ले अपनाय। रुक सकता है नरक से, ये ही सफल उपाय।।३।। अन्य तीर्थियों की अरे, महिमा से नहिं फूल। जानो परखो अन्य को, पकड़ सिद्धि का मूल।।४।। पर-तीर्थियों के बाद, अरु जिनवर भगवान। दोनों के सिद्धान्त को, देखो करो मिलान ।।५।। आगम या गुरुदेव से, सुनकर या स्वाध्याय। जाने वस्तु स्वरूप को, साधक कुशल कहाय।।६।।। .दृढ़ श्रद्धा. मूलसूत्रम्णिद्देसं णाइवट्टेज्जा मेहावी सुपडिलेहिय सव्वओ सव्वयाए सम्ममेव समभिजाणिया इह आरामं परिण्णाय अल्लीणगुत्तो परिव्वए णिट्ठियट्ठी वीरे आगमेणं सया परक्कमेज्जासि त्ति बेमि।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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