SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * ९६ * शुभ कर्मों के उदय से, दुर्लभ अवसर पाय । मगर मूढ़ भव भोग में, व्यर्थ हि जन्म गँवाय । ।५ । । पराक्रम बोध मूलसूत्रम् - से वसुमं सव्वसमण्णागयपण्णाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्जं पावं कम्मं तं णो अण्णेसी, जं सम्मति पासह तं मोणंति पासह, जं मोणंति पासह तं सम्मति पासह, ण इमं सक्कं सिढिलेहिं आइज्जमाणेहिं । पद्यमय भावानुवाद श्री आचारांगसूत्रम् - संयम धन का रूप लख, जो स्वामी कहलाय । सर्व चराचर तत्व का, बोध सुखद उर माय । । १ । । जाने सम्यक् ज्ञान जो, जाने वही मुनित्व । जाने अगर मुनित्व को, वह जाने सम्यक्तव । । २ । । दुष्कर संयम पालना, हर प्राणी अधिकार । सूरि 'सुशील' पराक्रमी, संयम का हकदार । । ३ । । अरे चराचर विषय में, रखता अगर ममत्व । मुनि 'सुशील' साधक नहीं, कभी न पाये तत्त्व । ।४।। संयम अरु संसार का, सम्यक् भाव विचार । वह संयम पालन करे, अहो ! निपुण अणगार । । ५ । । रूक्ष अशन सेवन करे, सम्यक्दर्शी वीर । कर्म नष्ट तप से करे, पा जाये भव तीर । । ६ । । चौथा उद्देशक • एकाकी विहार निषेध • मूलसूत्रम् - गामाणुगामं दुइज्जमाणस्स दुज्जायं दुप्परक्कंतं भवइ अवियत्तस्स भिक्खुणो ।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy