SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौथा अध्ययन : सम्यक्त्व पहला उद्देशक धर्म रहस्य मूलसूत्रम् - एस धम्मे सुद्धे निइए सासए समच्चि लोयं खेयण्णेहिं पवेइए । पद्यमय भावानुवाद धर्म अहिंसा शुद्धमय, शाश्वत नित्य जहान । सर्वलोक को जानकर, फरमाया भगवान । । १ । । • सर्व जगत् कल्याणमय, श्री जिनवर उद्गार | सत्य तथ्यमय है यही, यही धर्म का सार । । २ । । • लोर्केषणा निषेध • मूलसूत्रम् - तं इत्तु ण णि ण णिक्खिवे, जाणित्तु धम्मं जहा तहा । दिट्ठेहिं णिव्वेयं गच्छेज्जा, णो लोगस्सेसणं चरे । पद्यमय भावानुवाद मूलसूत्रम् - -- छल - माया छोड़ो सखे, अनुकंपा व्रत धार । जैसा धर्म स्वरूप है, वैसा लो स्वीकार । । १ । । आजीवन पालन करो, विषयों से रह दूर । मुनि 'सुशील' लोकेषणा, कर दे चकनाचूर । । २ ।। • अहिंसा प्रबोध • जस्स णत्थि इमाणाई, अण्णा तस्स कओ सिया ? ।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy