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________________ तीसरा अध्ययन : शीतोष्णीय * ७३* - - - -. छन्द कुंडलिया देख चुका संसार-भय, होता मुक्त सुजान । जन्म-मरण ही दुख महा, ज्ञानी को यह ज्ञान।। ज्ञानी को यह ज्ञान, कर ले धारण गुण सात। देखे वह मोक्ष पद, तब राग-द्वेष बिसरात।। जाने दर्शन-ज्ञान, यह मुनि 'सुशील' का लेख। ज्ञानी मुनि ले जान, भय जन्म-मरण ले देख।।७।। दोहा भव अतीत इस जीव ने, किये पाप बहु कर्म। बिन काटे कल्याण नहिं, जाने क्षय का मर्म ।।८।। .धैर्यवान मूलसूत्रम् सच्चम्मि धिई कुव्वहा, एत्थोवरए मेहावी सव्वं पावं कम्मं झोसेइ। पद्यमय भावानुवाद सावधान करते तुझे, बुधजन आगमकार । स्थिर हो तू सत्य में, बस इतना-सा सार ।।१।। हितकारी जो जीव का, वह संयम ही सत्य। संयम से हो लक्ष्य सुख, वह शिव सुख ही नित्य।।२।। सत्य जिनेश्वर वचन हैं, ले आगम में देख। जिनवाणी को ग्रहण कर, मिटे कर्म की रेख।।३।। चित्र-विचित्र बोध. मूलसूत्रम् अणेगचित्ते खलु अयं पुरिसे, से केयणं अरिहइ पूरइत्तए। पद्यमय भावानुवाद चंचल मन का जीव जो, वह संयम से हीन। ........चलनी में जल को भरे, ऐसा है मति हीन।।१।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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