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________________ तीसरा अध्ययन : शीतोष्णीय * ७१* पद्यमय भावानुवाद अरे! यहाँ नरलोक में, सब जीवों के साथ। हिंसा से बन्धन बढ़े, तजिए पातिक भ्रात ।।१।। हिंसादिक आरम्भ से, जीवन होइ व्यतीत । बंधन तोड़ो राग के, तभी होइ भव जीत ।।२।। जो भी मोहित काम में, होता बारम्बार । संचय करता कर्म का, निष्फल नर अवतार ।।३।। कर्मों से भारी बना, जाता भव सर डूब । पुनि-पुनि गर्भावास में, दुक्ख पायेगा खूब ।।४।। • बाल संग निषेध. मूलसूत्रम्अवि से हासमासज्ज, हंता णंदीति मण्णइ। अलं बालस्स संगेणं, वेरं वड्डइ अप्पणो।।३।। पद्यमय भावानुवाद मानव-कामासक्त जो, रचता हास-प्रसंग। जीवों का वध कर रहा, क्रीड़ा भाव उमंग ।।१।। अरे अज्ञानी जीव तू, व्यर्थ ही बैर बढ़ाय। संग करे नहिं बाल का, ज्ञानी जन समझाय।।२।। • पापभीरू. मूलसूत्रम्तम्हा तिविज्जो परमंति णच्चा, आयंकदंसी ण करेइ पावं। अग्गं च मूलं च विगिंच धीरे, पलिच्छिदिया णं णिक्कम्मदंसी।। पद्यमय भावानुवाद डरता है जो नरक से, पापकर्म भय भीरु । वही जानता मोक्ष गति, अतिशय युत नर धीरु।।१।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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