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________________ श्रीदशाश्रुतस्कंधे-प्रस्तावना प्रथम दशानी विगत । प्रज्ञा, हायनी, प्रपंचा, प्रागभारा, मन्मुखी अने सायणी ए दश अवस्थाओ नाम प्रमाणे दशे भावो भजवे छे । (१) बाल्यावस्थामां जीव हिताहित के कार्याकार्यने जाणतो नथी ते बाला (२) जेनी जुवानी अल्प खीली होय अथवा प्रज्ञा-बल मंद होय ते मंदा (३) क्रीडा कहेतां रमतगमतमां बोलवा विगेरेमा मन रहे ते क्रीडा (४) बल वीर्य विशिष्ट होय ते बला (५) तेमां व्यवहारकुशलता विशेष होय ते प्रज्ञा (६) जेमां बाहबल-इन्द्रियबल आदिनी हीणता होय ते हायणी (७) जेमां स्वपरने प्रपंच ऊभो थाय ते प्रपंचा (८) बोलतां, चेष्टा करतां अथवा भारथी नमी पडेलना जेवी जेनी दशा थाय ते प्रागभारा (९) वांको चाले, अटकता अटकतां अस्पष्ट भाषा बोले ते मन्मुखी अवस्था (१०) पलंगमां पडयो-पाथर्यो रहे, चालवानी शक्ति हीण थई गई होय ते स्वामिनी दशा. __ आ दशे दशाओ आयु विपाकनी जणावी छ । हवे अध्ययनने उद्देशीने दश दशाओ नियुक्तिकार कहे छे । (१) असमाधि (२) सबल (३) आशातना (४) गणिगुणो (५) मनसमाधि (६) श्रावकपडिमा (७) साधु-पडिमा (८) कल्प (९) मोह (१०) निया' आ दश दशाओ मानवजीवनना विकास माटे छे. आ नानी दश दशाओ ग्रंथकारे प्रत्याख्यान पूर्वमांथी जे जे प्राभृतमा हती तेमांथी उद्धरीने बालजीवोना उपकारने माटे आ ग्रंथनी रचना करी छे. ___ अत्रे चूर्णिकार-नियुक्तिकार फरमावे छे के मोटी दश दशाओ ज्ञाताधर्म-कथादि छठ्ठा अंगोमांथी जाणी लेवी अने शंकाकारनो उत्तर आपतां श्रीमान् चूर्णिकार जणावे छे के-आ ग्रंथ आहार, उपधि के मान-सत्कार माटे उद्धर्यो नथी, पण जीवो उपर अनन्त कृपा लावीने भावीमां रुप, रस, गंध, स्पर्श, वर्णादिनी उत्तरोत्तर हानी जोवाथी आ प्रयत्न भव्य जीवोना कंईक लाभने माटे थशे. ए ज हेतुथी आ ग्रंथ रचवानो प्रयत्न छे. प्रभु महावीरे आ प्रमाणे कर्तुं छे, एम जणावीने प्रभु महावीरथी परंपराए प्राप्त थयेला आ श्रुतने जणावतां प्रथम दशामां वीस असमाधिस्थानो जणावेल छे. ते आ प्रमाणे...(१) द्रुतं द्रुतं चालवू एटले उतावळे चालवू, धबधब चालवू (एवी रीते उतावळे बोल-उतावळे पडिलेहण करवी-उतावळे खावू वगेरे विकल्पो जोडवा (२) अप्रमार्जितचारी-(पुंज्या-प्रमाा विनानुं आचरण) (३) दुःप्रमार्जितचारी (जेम तेम पडिलेहण करवं-जेनुं पडिलेहण न थई शके तेवी उपधि ఉంభంతంతువుయంతయుం IV వంతయంతంతమయం
SR No.022580
Book TitleDashashrut Skandh Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri, Abhaychandravijay
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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