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________________ सप्तमी दशानी विगत प्रतिमाधारी साधुनुं जीवन कल्पे नहि. ज्यां सुधी रात्रि फाटे नहि त्यां सुधी पूर्व-पश्चिम-दक्षिण के उत्तर सन्मुख अवधारी कायोत्सर्गमां रहे. मासिक पडिमाधारी मनिने पृथ्वीतल पर जराये निद्रा के प्रचला करवी कल्पे नहि, कारण के श्रुतकेवली भगवंत जणावे छे के एम करवाथी अदत्तादान लागे, अर्थात् अवग्रह याच्या विना वपराय नहि. जो स्थंडिल या मात्रानी शंका थइ होय तो तेने टाले नहि. जो अवग्रह लईने पूर्व पडिलेहेल होय तो कल्पे अथवा जे उपाश्रयमां अवग्रह लीधो होय त्यां पडिलेह्या पछी यथाविधि स्थानके कल्पे. मासिक पडिमाधारी मुनिने रजयुक्त शरीरे गाथापति कुलने विषे भातपाणी माटे जळू न कल्पे. जो एम जाणे के हुं जल्ल-मल्ल (मेल) कादवथकी विशुद्ध छु तो जवू कल्पे. मासिक पडिमाधारी शीतोदक विकृतवडे , उष्णोदक विकृतवडे हाथ-पग-दांत-आंख-मुख विगेरे ने पाणी छांटतां के धोतां अथवा विविध लेप लगाडतां-आहार पाणी लेवा कल्पे नहि. मासिक पडिमाधारी मुनिने हाथी-घोडा-वाघ-वरु विगेरे दुष्ट प्राणीओ सामा आवता होय तो पाछा फरवं कल्पे नहि, पण अदुष्ट आवता होय तो कल्पे. मासिक पडिमाधारी मुनिने छायामांथी तडके आवळू कल्पे नहि. जो तडके होय तो छांयडे आवq न कल्पे. ज्यां रह्या होय त्यां ज आत्माने भावता विचरे. खरेखर आ प्रमाणे मासिक पडिमाधारी मुनि पडिमाने यथासूत्र-यथाकल्प-यथामार्ग-यथासत्य-सम्यग् रीते कायावडे स्पर्शी-पालन करी-शोभावी-पूर्ण करी-आराधीने वीतरागनी आज्ञा प्रमाणे पालन करे. बे मासिक पडिमामां पण नित्य वोस? काय यावत् बे दत्ती ग्रहण करे. त्रण मासिकमां त्रण दत्ती ग्रहण करे. चार मासिकमां चार दत्ती ग्रहण करे. पांच मासिकमां पांच दत्ती, छ मासिकमां छ दत्ती, अने सात मासिकमां सात दत्ती ग्रहण करे. अर्थात् जेटला मास तेटली दत्तीओ ग्रहण करे. पहेली सात अहोरात्रिक पडिमाधारी मुनि 'नित्यं वोसट्टकाय'थी मांडीने यावत् मासिक पडिमामां बतावेल सर्वविधि आचरे. विशेषमां चोथ भक्त अपानकवडे अर्थात् चोविहार उपवासे करीने गामनी बहार अथवा नगरनी बहार काउस्सग्गध्यानमा रहे. एवं बीजी सात अहोरात्रिमा विशेषता ए छे के ऊभा रहीने ध्यान करे, अथवा एक पग भूमि उपर स्थापे अने एक पग अद्धर राखे अथवा उत्कृष्ट आसने काउ ఉతంతవుతుండంతం XVI loంతువంతంతయంతం
SR No.022580
Book TitleDashashrut Skandh Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri, Abhaychandravijay
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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