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________________ पंचम-छट्ठी दशानी विगत चोपाई- यथातथ्य सुपनफल जाण, सर्व दुःखोनी करतो हाण, जाणे पूर्वमां उग्यो माण, एहि ज माण समाधिठाण. विचित्र शय्यासन ने आहार, सर्व जीवोनो रक्षणकार, अल्प आहार इन्द्रिय दमनार, पामे देवपणुं तत्काल. सर्व ईच्छाओ रोधनकार, क्षमतो भयभैरवनो भार, संयमतपनो खप करनार, थाए अवधिज्ञान भंडार. तप आदरतो अग्नि समान, लेश्या त्रणY करतो, पान अवधिदर्शन दीप समान, त्रण लोकनुं जोतो मान. ससमाधि लेश्यावंत, अविधिनो करतो अंत, प्रतिबंधने मुकतो संत, त्रण लोक ज्ञाता भगवंत. लोकलोक जाणंता संत, केवलज्ञानी पूज्य महंत, दर्शनावरणी कर्मोनो अंत, कर्यो त्यारे यथा गुणवंत. त्रण लोकना स्वामी संत, इन्द्रादि जस चरण पूजंत, लोकालोक जोता भगवंत, केवलदर्शी त्रिलोक पूजंत. एवी रीते बीजी गाथामां विशुद्ध पडिमाए करीने मोहनो क्षय करनारा, वली जेम ताडवृक्षना मस्तके रहेल सोय नाश पामे छते आ ताडवृक्ष नाश पामे तेम एक मोहनीय कर्मने हण्ये छते बीजां बधां कर्मो हणाई जाय. वळी जेम सेनापति हणाय तो सेना पण नासी जाय एवी रीते मोहनीयनो नाश कर्ये छते बधां कर्मो हणाई जाय. इंधण रहित अग्नि, धूमाडो नाश पामे छते नाश पामे, तेम जे झाडनां मूल सुकाई गयां होय तेने सिंच्या छतां ऊगतां नथी, तेम मोहनो क्षय थशे कर्मो लागतां नथी. जेनुं बीज नाश पाम्यु तेनो अंकुरो उगतो नथी. औदारिक शरीर-नाम कर्म, गोत्र कर्म, आयुष्य कर्म, वेदनीय कर्म, तेजस तथा कार्मण शरीरनो त्याग करी रज रहित केवली भगवान थाय छे, एवी रीते सर्व जाणीने चित्तसमाधि पामीने आयुष्यमंतोए शुद्ध श्रेणिने पामीने आत्मशुद्धिने पामे अर्थात् मोक्षे जाय. इति पंचम दसा छट्टी दशामां मुख्य विषय तो अगियार उपासक पडिमाओनो छे, पण आरंभमां अक्रियावादी, क्रियावादी मिथ्यात्वनुं वर्णन तथा तेवी क्रियाना फलोनुं वर्णन आप्युं छे. అంతంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంం
SR No.022580
Book TitleDashashrut Skandh Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandrasuri, Abhaychandravijay
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh
Publication Year2007
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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