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________________ वाले को गृहस्थ मानना, साधु मानना नहीं वह दुर्गति के निमित्त रूप क्रिया करते हैं। ऐसा श्री तीर्थंकर, गणधर, भगवंतों ने कहा है। सन्निधि रखनेवाले को गृहस्थ कहा है तो वस्त्रादि रखनेवाले को मुनि कैसे कहा जाय? ऐसी शंका के समाधान में कहा है- वस्त्र, पात्र, कंबल, पाद प्रोंछन रजोहरण आदि आवश्यक सामग्री रखी जाती है वह भी संयम सुरक्षा हेतु है। लज्जा मर्यादा के पालनार्थ है। मूरिहित उपयोग किया जाता है। इसी हकिकत को आगे सिद्ध किया है। ___ स्व पर तारक ज्ञातपुत्र श्री महावीर परमात्मा ने ममत्व रहित आवश्यकतानुसार वस्त्रादि रखने को परिग्रह नहीं कहा है। उन वस्त्रादि पर मूर्छा है, आसक्ति है, ममत्वभाव है, उसको परिग्रह कहा है। इस हेतु से गणधरादि भगवंतों ने सूत्रों में वस्त्रादि रखने में दोष नहीं कहा। ज्ञानी महापुरूष सर्वोचित देशकाल में वस्त्रादि उपधि युक्त होते हैं वे छ: काय की रक्षा हेतु उसे स्वीकार करते हैं क्योंकि वे अपने देह पर ममत्व भाव से रहित होते हैं तो वस्त्र पर तो ममत्व भाव न हो उसमें कहना ही क्या? इति पंचम संयम स्थान ।१८ से २२। इन आगमोक्त कथन से स्पष्ट हो रहा है कि जहां-जहां वस्त्रादि, पुस्तकादि, औषधादि का संग्रह ममत्व भाव पूर्वक है वहां-वहां भाव साधुता नहीं है, गृहस्थभाव है। वह वेश से मुनि है भाव से गृहस्थ है। १८ से २२। 'षष्ठम् स्थान रात्रिभोजन त्याग" अहो निच्चं तवो कम्मं, सव्वबुद्धेहिं वण्णि। जाय लजासमावित्ती, एगभत्तं च भोयणं॥२३॥ संति में सुहमा पाणा, तसा अदुव थावरा। जाई राओ अपासंतो, कहमेसणीअं चरे॥२४॥ उदउल्लं बीअ संसत्तं, पाणा निवडिया महि। दिआ ताई विवजिजा, राओ तत्थ कह चरे? ॥२५॥ एअं च दोसं दट्टणं नायपुत्तेण भासि। सव्वाहारं न भुंजंति, निग्गंथा राइभोअणं॥२६॥ संयम पालन में बाधा न आवे उस रीति से देह पोषण युक्त नित्य-अप्रतिपाती तपःकर्म सभी तीर्थंकर भगवंतों ने कहा हुआ है और एक बार भोजन/गोचरी करने का कहा है।२३। प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले दो इंद्रियादि त्रस, पृथ्वी आदि स्थावर प्राणी हैं। जो रात में चक्षु से देखने में नहीं आते। वे दृष्टि गोचर न होने से रात को निर्दोष गोचरी के लिए कैसे फिरेंगे ? किस प्रकार आहार करेंगे ? रात को गोचरी हेतु जाने में एवं वापरने में प्राणीओं का घात होता है। २४। श्री दशवैकालिक सूत्रम् /७२
SR No.022576
Book TitleDashvaikalaik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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