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________________ असंजमकर नच्चा,तारिसिं परिवज्जओ॥२९॥ साहटु निक्खिवित्ताणं,सचित्तं घट्टि आणि ॥ तहेव समणट्णाओ, उदगं संपणुल्लिआ॥३०॥ ओगाहइत्ता चलइत्ता, आहरे पाण-भोअणं। दितिअं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं॥३१॥ .पुरे कम्मेण हत्थेण, दव्वीओ भायणेण वा। दितिअं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं॥३२॥ गोचरी वहोरने की विधि का विधान करते हुए सूत्रकार श्री कह रहे हैं कि - उस-उस कुल मर्यादा के उचित स्थान पर खड़े रहे हुए साधु को, गृहस्थ द्वारा लाये हुए आहार पानी में से अकल्प्य ग्रहण न कर कल्प्य हो वही लेना ॥२६॥ कल्प्य अकल्प्य की व्याख्या दर्शाते हुए कहा है कि भूमि पर इधर-उधर दाने आदि गिराते हुए लाते हों तो, बीज, हरी वनस्पति आदि को दबाती हुई, मर्दन करती हुई लाती हो तो साधु के लिए असंयम का कारण होने से, अकल्पनीय है ऐसा कहकर ग्रहण न करना॥२८-२९॥ दूसरे बर्तन में निकालकर दे, नहीं देने लायक बर्तन में रहे हुए पदार्थ को सचित्त पदार्थ में रखकर दें, सचित्त का संघटन कर दे, साधु के लिए पानी को इधर-उधर कर के दे॥३०॥ ___वर्षाकाल में गृहांगण में रहे हुए सचित्त पानी में से होकर आहार लाकर वहोरावे, सचित्त जल को बाहर निकालकर आहार वहोरावे, साधु को आहार वहोराने हेतु हस्त, चम्मच, बर्तन आदि धोने . रूप पुरस्कर्म कर आहार वहोरावे, ऊपर दर्शित रीति से आहार वहोराने वाले को साधु स्पष्ट कहे कि इस प्रकार का आहार हमारे लिए अकल्प्य है।हमें लेना नही कल्पता ॥३१॥३२॥ (अवं) उदउल्ले ससिणिवे, ससरक्खे महिआ उसे । हरिआले. हिंगुलो, मणोसिला अंजणे लोणे॥३३॥ गेरूअ वनिअ सेरिअ-सो8िअ पिट्ट कुक्कुसको। उक्किट्ठ-मसंसट्ठे, संसढ़े चेव बोद्धव्वे॥३४॥ असंसठेण हत्येण, . दव्वीओ भायणेण वा। दिज्जमाणं न इच्छिज्जा, पच्छाकम्मं जहिंभवे ॥३५॥ इस प्रकार हाथ से जल झर रहा हो, जलाई हो, सचित्त रज युक्त हो, किचड़ युक्त हो, क्षार युक्त हो एवं हरताल हींगलो/मणसिल, अंजन, नमक, गेरू, पीलीमिट्टी खड़ी, फटकड़ी, तुरंत का गेहूं आदि का लोट, क्रौंच बीज, कलींगर आदि फल, शाक आदि से खरंटित हाथ से, या न खरंटित हाथ, चम्मच आदि साधु के लिएसब्जी आदि में रखकर उससे आहार वहोरावे तो न ले। पश्चात् कर्म नामक दोष के कारण ॥३३।३४॥३५॥ संसट्टेण य हत्येण, दव्वीओ भायणेण वा। दिज्जमाणं पडिच्छिज्जा, जं तत्थेसणिअं भवे॥३६॥ श्री दशवैकालिक सूत्रम् / ५१
SR No.022576
Book TitleDashvaikalaik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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