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________________ का सर्वनाश होकर संसारी अवस्था प्राप्त कर रहे हैं उसके पीछे मूल कारण है इन तीन श्लोकों के रहस्यार्थ की ओर दुर्लक्ष्य ! सद्गुरु भगवंतों से इन तीन श्लोकों के रहस्यार्थ को समझकर जीवन यापन करने वाला गोचरी . जानेवाला मुनि शास्त्रोक्त / आगमोक्त रीति से चारित्र पालन कर सकेगा । साणं सूयं गावि, दित्तं गोणं हयं गयं । संडिब्धं कलहं जुद्धं, दूरओ परिवज्जओ ॥ १२ ॥ गोचरी के लिए मार्ग में चलते समय श्वान, प्रसुता गौ (गाय), मदयुक्त वृषभ, अश्व, हस्ती, बालकों के क्रीड़ा का स्थान, इनको दूर से छोड़ देने चाहिये । अर्थात् ऐसे मार्ग पर से साधु को गोचरी नहीं जाना चाहिये । १२ ॥ 66 मुनि कैसे चलें " नावणए अणाउले । अणुन्नए अप्पहिट्ठे इंदिआई जहाभागं दमइत्ता मुणी चरे ॥ १३ ॥ मार्ग में जाते हुए साधुओं को ऊँचे, नीचे न देखना, स्निग्धादि गोचरी की प्राप्ति से हर्षित न बनना, न मिलने पर क्रोधादि से आकुल, व्याकुल न होना, स्वयं की इंद्रियों को अपने अधीन रखकर चलना ॥ १३ ॥ दवदवस्स न गच्छेजा, भासमाणो अ गोअरे । हसंतो नाभिगच्छिज्जा, कुलं उच्चावयं सया ॥। १४ ।। ऐश्वर्यादि की दृष्टि से ऊँच, नीच, मध्यम कुलों में गोचरी जाते समय शीघ्रतापूर्वक न चलना, भाषा का प्रयोग करते हुए न चलना, हंसते हुए भी नहीं चलना । 66 "क्या न देखें" आलोअं थिग्गलं दारं, संधिं दगभवणाणि अ चरंतो न विनिज्झाए, संक-द्वाणं विवज्जए॥ १५ ॥ " गोरी हेतु गए हुए साधु को गृहस्थों के घर के वेंटीलेशन, बारी, द्वार (कमरे के द्वार आदि), चोर के द्वारा बनाए गए छेद, दीवार के भाग को पानी रखने के स्थान को, इन स्थानों की ओर दृष्टि लगा कर नहीं देखना क्योंकि ये सब शंका के स्थान है। वर्तमान युग में बाथरुम, लेट्रीन, टी. वी. वीडियो रखने के स्थान की ओर नजर न जाए इसका पूर्ण ध्यान रखना चाहिये । रन्नो गिहवड़णं च रहस्सा - रक्खिआण य। संकिलेसकरं ठाणं दूर ओ परिवज्जए । १६ ॥ गोचरी गये हुए मुनि को राजा, गाथापति, ग्राम संरक्षक आदि नेताओं के गुप्त स्थल की ओर न देखना, न जाना एवं क्लेश कारक स्थानों का दूर से त्याग कर देना चाहिये । इस श्लोक में दर्शित स्थानों का दूर से त्याग न करे तो साधु विपत्तियों को आमंत्रण दे देता है । १६ । कैसे घरों में प्रवेश नहीं करें ? श्री दशवैकालिक सूत्रम् / ४८
SR No.022576
Book TitleDashvaikalaik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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